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आख़िरी चाह !
Hindi Poetry, March 2011 Contest |
इस रचना के माध्यम से उन सभी भाई बहनो से निवेदन करना चाहता हूँ जो,अहंकार के इस कदर वाशिभूत हो जाते हैं की अपनी ही गृहस्थी के वृक्ष को अपनी अहंकार की कुल्हाड़ी से काटते रहते है,और होश तब आता है जब वृक्ष गिरने के कगार तक पहुँच जाता है,——— एक बार अगर माफी माँगने से,या अपने जीवन साथी को गले लगाने से हालात सुधरते हों तो कभी देरी मत करना. अन्यथा बाद मे पछताने के अलावा कुछ नही मिलता ! हम अवगुणो को बताने मे कभी देर नही करते ,पर गुणों को बताने मे छोटा क्यो महसूस करते है!
अग्नि के सात फेरे लेकर मैं तुम्हे अपने घर लाया था,
तुमने भी अपना सब कुछ छोड़ कर मुझे अपना बनाया था!
दो जिस्म एक जान सा मुझे प्रतीत होने लगा,
अपनी बगिया को महकाने के मैं भी सपने सजोने लगा !
तुम्हारे मन मे कई प्रश्न थे,पर तुम मुझ से कह ना सकी,
हालत से लड़ती रही,पर ज़्यादा दिन सह ना सकी!
वक्त बदला ,हालात बदले और सब कुछ बदल गया,
एक दूजे को समझ ना सके ,समय बस यूँ ही निकल गया!
भूल गये की गृहस्थी की गाड़ी भी दो पहियों से चलती है,
चाँदी भी चमकती है जब वो आग से निकलती है!
तनाव इस तरह बढ़ा की जीवन अंधकार मे खो गया,
हमारा प्यार क़ब्रगाह की खामोशियों मे ना जाने कब सो गया!
अहंकार का दानव इस कदर सर पे सवार था,
एक दूजे के आगे झुकना हमे नागवार था!
ना जाने कब हमसे हमारी तक़दीर इस कदर रूठ गयी,
उम्मीद की चंद बूँद क्रोध की तपिश मे सूख गयी!
फिर एक दिन तुम अचानक ना जाने कहाँ चली गयी,
तब पता चला की जिंदगी रेत की तरह हाथ से निकल गयी
आज अहसास हुआ की तुम मेरी जिंदगी मे क्या थी,
मेरी जिंदगी तुम ही मेरी जीने की वजह थी!
मैं दीवाना था जो तुम्हारे प्यार को महज दिखावा समझता रहा,
अपने ही घर मे खुशी थी और मैं दर दर भटकता रहा !
कहाँ हो तुम बस एक बार मेरे पास आ जाओ,
मेरी एक आख़िरी चाह बस प्रियवर तुम पूरी कर जाओ!
बस एक बार गले लगा कर तुम से माफी माँगना चाहता हूँ,
अपनी इस भूल को तहेदिल से सुधारना चाहता हूँ!
गुमान के नशे मे इंसान एक छोटी सी बात भी भूला देता है,
कि आसमान पे उड़ता पंछी दिन ढलते दरख़्त का ही सहारा लेता है!
जब हम किसी से नफ़रत करते हैं तो बेहिचक कई बार कह देते हैं,
और जब प्यार आता है तो उसे दिल ही मे क्यो रहने देते हैं!
गृहस्थी की डोर बड़े ही कच्चे धागे से बनी होती है,
ज़रा सी भूल इसे तोड़ कर तार -तार कर देती है!
एक छोटी सी बात को गृहस्थी का मन्त्र बना लेना,
जब एक छोर खिच रहा हो तो दूजे को ढील दे देना!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
एक छोटी सी बात को गृहस्थी का मन्त्र बना लेना,
जब एक छोर खिच रहा हो तो दूजे को ढील दे देना!
एक बहुत ही सही बात कही आप ने!
@renukakkar, kai kavitaeen dimag se likhi jati hai ,to kai dil se dil se likhi gayi ek rachna hai—- sahrahne ke liye dhanyavad
bohut achchi rachna badhai!!
@pallawi, sahirday dhanyavad
बहुत बढ़िया मनभावन भावनिक संवेदना
इस व्यथा के अति सुन्दर विवरण की अर्थपूर्ण रचना
रचना के लिए हार्दिक बधाई की भावना
पर बहुत जरूरी है कई गलत छपे हिंदी शब्दों को edit कर सुधारना
इसीलिए मैंने अभी सम्हाल रखा है कोई अच्छी सी rating देना …:-)
@Vishvnand, hamesha ki tarah sudharne hetu prerit karne ke liye dhanyavad— jo samajh me aaja wo sudhar karne ki chesta ki hai sir—- bach gayi galtiyon ke liye ab yahi likhoonga ki “more awgun chit na dharo”
@rajivsrivastava
अब बहुत सुधरी लगती है. इस स्तर की होती तो शायद गलती के बारे में कमेन्ट भी न करता.
फिर भी अब ये बचे सुधार भी कर दीजिये.
जिस्म
छोटी सी बात भी भुला देता है,
कि आसमान
“अवगुण चित न धरो” ठीक है पर उससे भी ज्यादा अच्छा है ” अवगुण दूर करो ” 🙂
@Vishvnand, sure sir !aap ki parkhi nazar ke hum kayal ho gaye sir! bahut bahut dhanyavad
एक उपदेशात्मक मन्त्र संजोये भावनात्मक रचना- बधाई
@sushil sarna, aap ne saraha sir! hooslaafzahi hui dhanyavad
बहुत ही संवेदना से भरी भावनात्मक रचना बधाई !!
@Santosh Bhauwala, dhanyavad-apna pyar isi tarah dete rahiyega
बहुत ही भावनात्मक , संवेदना पूर्ण रचना बधाई !!