« Demi-god | वो सूरज था सो डूब गया » |
उदास दोपहरें
Crowned Poem, Hindi Poetry |
छोटी थी,
तो अक्सर देखा करती थी माँ को
उस उपर वाली दुछत्ती पे धरे
संदूक को उतार
उस की एक एक चीज़
फिर से खोल-तह, झाड पोंछ, सईहारते !
यह उसकी दैनिक नहीं
तो कम से कम
साप्ताहिक दिनचर्या का अंग तो था ही
यूँ तो उस संदूक में धरी
कोई भी चीज़
इंच भर भी
इधर से उधर नहीं हुई होती
और होती भी कहाँ से
दुछत्ती इतनी ऊंची थी
कि उस तक पहुँचने के लिए
माँ को भी
सबसे ऊंची वाली मेज के ऊपर
कुर्सी रख कर चढ़ना पड़ता…
…और फिर सबको पता था
कि उस संदूक में
नेपथलीन की गंध में तह किये
पुराने कपड़ों के सिवाय
और कुछ है भी नहीं…. |
पर फिर भी माँ उसे
अक्सर ही उतारती
और अपनी सारी दोपहर
उसके साथ ही बिता देती…
हाँ, माँ इस काम के किये खासतौर पर
दोपहरें ही चुना करती …
…वो उदास दोपहरें |
अब यह कहना थोडा मुश्किल है
कि माँ उदास दोपहरें चुना करती थी…
या माँ को उदास देखकर
दोपहरें खुद ही उदास हो जाया करतीं…
पर हाँ, वो दोपहरें उदास होतीं …
सच….उस वक़्त दूसरों की तरह
मुझे भी यही लगता था
कि माँ को काम करने की आदत है
और इसीलिए वो काम ना होने पर भी
काम ढूंढ लिया करती है
पर अब
जब खुद उस पड़ाव पर आ पहुंची हूँ
जहाँ ना तो नाखूनों पर चावल दे जाने वाले बगूलों ( माना जाता था कि इससे ख्वाहिशें पूरी होती हैं)
की अहमियत रह गयी है
ना ही जिद्द करने की उम्र
और जहाँ ख्वाहिशें अक्सर भविष्य के नाम लिखे
वर्तमान के किसी संदूक के हवाले कर दी जाती हैं,
बड़े एहतियात से… तब जा कर समझ आया है
कि उन् उदास दोपहरों की उदासी
आती कहाँ से थी….
अति सुन्दर और उत्क्रष्ट भावनिक कविता.
बहुत अभिनंदनीय रचना
Stars 5+
ऐसी उदास दोपहरें माँ के लिए उदासीन नहीं शायद आत्मानंद देने वाली होती होंगी जिसे हम नहीं समझ सकते……..
balaa kee khubsoorat rachna.
एक भावना प्रधान, उत्कृष्ट रचना, वर्तिका जी, हार्दिक बधाई. बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली है. लिखती रहिये.
बहुत दिनों के बाद मंच पर आपका आगमन एक भावनाओं में डूबी रचना के साथ हुआ जिसकी तारीफ़ के लिए शब्दों की अभिव्यक्ति कम है- दोपहर,सन्दूक,दुछती तो आज भी वही है पर उस उदासी को याद करके आज दोपहर ज्यादा उदास नजर आती है-जनता हूँ ऐसी रचनाएँ लिखते वक्त भावनाओं की लहरें किनारे तोड़ देती हैं-इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और असंख्य सितारे
ठीक ११ महीनों बाद आपकी रचना आई है और वाह….!
बहुत बहुत मन भावन
wakai man or dil dono hi khush ho gaya rachana padkar….. bahuuuutttttttttttttttt
khubsuratttttt rachanaaaaaa
vartika ji bas ek shabd–kahoonga—– laajawaab!!!!!!!
आपको फिर से लिखता देख बहुत अच्छा लगा….