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मै जानता हूँ यह बजट नहीं है
Hindi Poetry |
मै जानता हूँ यह बजट नहीं है
मै जानता हुँ,तुम जरूर आओगे
अपनी बगल मे दबाए कुछ दस्तावेजो के साथ
लगभग दर्जन भर कटौतियाँ होंगी और
एक -आद कल्याणकारी योजना
सौ पचास पाँच सौ हजार के नये नोट छापने और
एक आद अंको के सिक्के आयात करने की घोषणाओ के साथ
सब कुछ मिलेनियम होगा पर……..
शायद कटे फटे टुकड़ों मे मुड़े तुड़े नोट खूब चलैगें
ढेर सारी रियायतें ,सपनों को पूरा करने की कवायदें हो्गी पर
शायन नहीं होंगी गूँजाइश उन पैबँदों के लिये
जिन्हे आबादी अपनी कमीज पर चिपकाकर तन ढक सके।
कूछ मेजें हैं जो थपथपायी जाती रही है ..आजादी के बाद से
कुछ कोने हैं जहाँ से शर्म शर्म के नारे गूँजते हैं …आजादी के बाद से
तुम्ही बताओं इस देश ने
बच्चों के आँगन कहाँ छिपा लिये है
युवाओं के सपने किसकी आँखों मे भर दिये है
सुनो दहकते पलाश के रंगों की आभाएँ
फैल रही है जुआघर मे तब्दील हो चुके शेयर बाजारों मे
सटोरियों,दलालो नव दौलतियों की कोठियां
उद्योगपतियों के शाही उद्यान
बड़ी कम्पनियों के कारोबारी परिसर
सब कुछ विराट हुये है मुगल गार्डन से पर
शायद आम आदमी के पास अब बसंत नही है
फिर भी तुम जरूर आओगे बसंत
इस जाती हूई बहार मे खुशगबार कुछ नही होता है
एक आद खिलखिलाते हैं,सारा जंगल रोता है
मै जानता हूँ ये बसंत
ये कागज हैं कोई मौसम नहीं हैं
यहाँ सब कुछ जो दिखाई दे रहा है
वह बजट नही है ।
कमलेश कुमार दीवान
28/02/2000
विषय पर गहन भावनाएं और कटाक्ष
रचना अतिसुन्दर अर्थपूर्ण और मनभावन ..
इस रचना के लिए हार्दिक अभिवादन
“ढेर सारी रियायतें ,सपनों को पूरा करने की कवायदें हो्गी पर
शायन नहीं होंगी गूँजाइश उन पैबँदों के लिये
जिन्हे आबादी अपनी कमीज पर चिपकाकर तन ढक सके।
तुम्ही बताओं इस देश ने
बच्चों के आँगन कहाँ छिपा लिये है
युवाओं के सपने किसकी आँखों मे भर दिये है
यहाँ सब कुछ जो दिखाई दे रहा है
वह बजट नही है ।” ……सन्दर्भ में ह्रदयस्पर्शी प्रभावी …
अच्छी प्रासंगिक रचना .
सशक्त कविता किसे कहते हैं देख लीजिये ,
पहले कवि पूछते थे –
वीरों का कैसा हो वसंत
और अब रह गया है-
वंचित का कैसा हो वसंत.
मंहगाई की गाथा अनंत.
चादर छोटी है पेट बड़े
है काल कथा कैसी दुरंत,
वित्त मंत्री को स्पष्ट आईना दिखाया है आपने !
बहुत अच्छी मनभावन रचना ! बधाई !!!
bahut sach kaha aa p ne -behtareen rachna
बहुत खूबसूरती से बजट पर सच्ची प्रतिक्रिया व्यक्त की है आपने…