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“गाँव की सोंधी गली”
Hindi Poetry |
एक झोंका हवा का था आया,
संग अपने सोंधी सी खुशबू उड़ाकर था लाया.
महक उन यादों की हो गयी फिर से ताजा,
परीक्षा खत्म होते ही याद आते थे दादी दादा.
टिकट के निकलते ही गिनती थी दादी हर दिन .
दो महीने खुशियों का ठिकाना रहता था नहीं .
स्वागत में खड़ा हो जाता था गाँव सारा,
जैसे जंगल में नया प्राणी हो आया,
छु-मंतर हो जाता हर तनाव पहुंचते ही वहां.
दादी के गढे कहानियां और किस्से ,
ले जाते थे राजा-रानी और परियों के शहर में ,
सुलाती सुरीली लोरियाँ उनकी गहरी नींद में…
शाम ढलते आती थी तारों की बरात,
चाँद आता संग उनके या फिर आता आधी रात.
टिमटिमाता चादर ओढ़े हम छत पर,
गुफ्तगू थे करते सखियों संग सारी रात.
माँ की बिंदिया सा, लालिमा बिखेरते उगता सूरज ,
दिशा सुझाता जैसे, देखो यही है पूरब.
पेड़ पर चढ़ तोड़ते थे हम कच्ची कैरी ,
सरगम थी सुनाती खेतों की हरियाली…
दुपहरिया टूबल थे चलवाते दादाजी,
डुबकी लगाने जुट जाते थे बच्चों संग हम भी.
वो छड़ी लेकर बच्चों को भगाना,
वो हमारा दादी के पल्लू में छिप जाना,
दुलार में दादा पेट पर ढोलक बजाना.
दादा दादी की लाडली कितना उन्हें थी सताती,
मुश्किल है उन पलों को भुलाना, हैं सारी बातें रुलाती.
शहर के व्यस्त जीवन में न जाने कहां खो गये हम भी ,
रोजमर्रा की दिनचर्या संग सो गये सारे अरमान भी .
गाँव की वह संकरी गलियां आ भी हमें बुलाती हैं,
गाँव की वह सोंधी खुशबु आज भी याद आती है ………..
राजश्री राजभर .
अतिसुन्दर प्यारी सी रचना
सब को प्यार से याद दिला जाती
बचपन के दिनों का सुन्दर सच अपना अपना
जो जीवन की इस राह में अब रह गया सिर्फ सपना…
Stars 4 ++
Liked immensely.
Commends for this beautiful poem
thanx alot sir for ur beautiful comment..
ateet kee yadon kee ooshma se otprot bahut pyari aur samast paathkon se sadharaneekaran karti rachna. badhayi.
bahut bahut dhanyavad sir.
Apne to gaon ke sunheri yaadein taza kar di kash wo bachpan ke din fir se laut aate.