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तेरे दीदार की बैठे हैं तमन्ना लेकर
Hindi Poetry |
तेरे दीदार की बैठे हैं तमन्ना लेकर
मिल सका तू न अगर क्या करें दुनिया लेकर.
बुलबुला सांस का ज्यादा नहीं चलनेवाला,
सिर्फ उतना ही चले आये हैं जितना लेकर.
बेखबर कुछ तो खबर पास पडोसी की रख ,
वर्ना जाएगा यहाँ से तू भला क्या लेकर.
तुने सूरज को दरीचों से परे रक्खा है,
अब कहाँ जायेगा अन्दर का अँधेरा लेकर.
दिल बहलता ही नहीं देखे सुने खेलों से,
अब कहीं और ही चल हमको मेहरबां लेकर.
दमे बाजू भी ज़रूरी है अगर चलना है,
वर्ना किस सिम्त हवा जाय सफीना लेकर.
किस क़दर भीड़ में तनहा है शहर वाले सब,
डोलते फिरते हैं रूहों के बियाबां लेकर.
जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना
सुंदर रचना
हार्दिक बधाई बन्धुवर
@dr.ved vyathit, dhanyavad ved ji.arth ki pratidhvani kahan tak goonjati hai.
बहुत खूब, अर्थपूर्ण
जीवन में सारा जो कमाया है रिश्वत लेकर
सब यहीं छोड़ तू जाएगा पापी कर्म लेकर …
@Vishvnand, sahi farmate hain aap, sikandar jab gaya to hatheli faili hui thi.
तुने सूरज को दरीचों से परे रक्खा है,
अब कहाँ जायेगा अन्दर का अँधेरा लेकर.
किस क़दर भीड़ में तनहा है शहर वाले सब,
डोलते फिरते हैं रूहों के बियाबां लेकर.
बहुत खूबसूरत
@chandan, aap ki khoobsurat pratikriya ke liye dhanyavad.
बहुत खूबसूरत रचना. हार्दिक बधाई .
@Jaspal Kaur, shukriya jaspal ji,