« ‘धरती माँ” | पैरोडी गीत (हम लाए हैं कपड़े भी) » |
Hindi Poetry |
वादों के अंधेरो में गाफिल हुए अरसा हुआ वरना मेरे भी आँगन में सवेरा होता ख्वाब की सूरत, पलकों की उलझन में नींद का आलम याद नहीं है मुझको
ना बिस्तर की सिलवटे यूँ चुभती अगर मेरी आँखों में भी सपनो का बसेरा होता
काश तुमने हमें थोड़ा भी समझा होता दर्द इतना ना फिजाओं में बिखरा होता
हम भी महसूस कर पाते सबा में खुशबु को, हमारे जेहन में थोड़ा जो होंसला होता ना जाने कब मेरा दिन ढला, सूरज मुडा शामे थमी कब रात हुई