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अरे ! वो निकल गयी !
Hindi Poetry |
अरे ! वो निकल गयी !
महँगे म्यूजिक सिस्टमों की धमक,
आज मज़ा नहीं दे पा रही थी,
बलखाती कमर खुद को,
दर्दीला एहसास करा रही थी ।
हुस्न तो रोज वाला ही था,
पर नज़ाकत गायब थी,
मेकअप भी पूरा ही था,
पर वो बात नहीं आ पा रही थी ।
खुद के बच्चों की होशियारी और स्मार्टनेस,
आज चुभ सी रही थी,
उनके तारीफों वाली पुलिया,
दरकती सी लग रही थी ।
पडोसन का दिया हुआ लड्डू,
फ़ीका सा लग रहा था,
दिखावे को मेन्टेन करना,
साफ़ झलक रहा था ।
अरे ! वो निकल गयी !,
वो अन्दर ही अन्दर झेंप सी गयी थी,
गरीब पडोसन की बेटी,
आई. आई. टी. क्वालीफ़ाइ जो कर गयी थी ।
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
marmik maar karne vali manovagyanik kavita.
@siddha Nath Singh,
आपकी तारीफें ! हमारे हौसले !
गहन सुन्दर रचना और अंदाज़
क्या करियेगा आज के ऐसे ही हैं मिजाज़
दिल से निकली दबी सी आवाज़ …..
Hearty commends
@Vishvnand, हार्दिक आभार और धन्यवाद सर! उनके दिल से भले ही दबी सी आवाज निकली हो परन्तु मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि यह “Hearty commends” आपके दिल से खुल कर निकला है 🙂
दूसोरो की ख़ुशी आजकल लूगो को अच्छी नहीं लगती…ठीक लिखा आप ने
@renukakkar, हार्दिक धन्यवाद ! बहुत ठीक फरमाया आपने !
दिल को छु गयी ये रचना. पढ़कर लगा क़ि ये मेरी ही कहानी है…….
@bhanu,
हार्दिक आभार भानु जी ! फिलहाल ये एक हाल ही का वाकया है. जो बस यूं ही शब्दों में ढल गया 🙂