« देखकर जन्नत उसका घर हमे याद आया है….. | विडम्बना » |
एक, दो, तीन, चार ……. बस
Hindi Poetry |
एक, दो, तीन, चार ……. बस
हम दोनों स्कूल से
छुट्टी होने पर घर साथ आते थे,
बारिशों में सड़क के किनारे
जो प्लाट खाली रह जाते थे,
वो झील बन जाते थे,
छोटी हुई तो गहरी,
बड़ी हुई तो उथली.
दोनों पत्थर थोड़े अंदाज़ में
यूँ फैंकते चलते थे कि
पत्थर पानी की सतह
पर कुलांचे भरता था,
तुम कितने एक्सपर्ट थे,
पत्थर पानी में फैंकने में,
जाने कहाँ से सीखा था सब तुमने?
एक, दो, तीन, चार, पाच , छ:, सात आठ…
लाख गुजारिश करने पर भी,
तुमने न वो तरकीब सिखाई ,
मेरा तो हर बार,
एक, दो, तीन, चार,… बस.
yaadon ke jhurmut me ghoome thakan kahan se aayegi.
diye tumhare nayanon ke hon deevali man jayegi.
@siddha Nath Singh, आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया पढ़ कर मन भाव विभोर हुआ.
सचमुच एक जीवंत स्मृति चित्र उकेर कर रख दिया आपने !
इस्कूल का बस्ता एक किनारे रख हम भी कम नहीं थे इस एक..दो..तीन..चार….. बस नहीं 🙂
मजा आ गया आपकी यह रचना पढ़कर.. हार्दिक अभिनन्दन है इस वास्तविक स्मृति चित्र का !
@Harish Chandra Lohumi, मैं शुक्रगुजार हूँ, आप ने रचना पसंद की.
आपकी ये बातें पढ़ कर कुछ एक तस्वीर सी चलती रही देर तक निगाहों में वाकई काबिले तारीफ़ है आपका हुनर.
@shakeel, शकील भाई, बहुत शुक्रिया.
अत्यंत ही सुंदर रचना है इसे पढ़कर मन आत्म विभोर हो उठा
@shiv kumar bhardwaj, मैं शुक्रगुजार हूँ आप जैसे पारखियों का.