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दो शब्दों से बना है एक मंदीर

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Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry

दो शब्दों से बना है एक मंदीर
जिसमे रहती है मेरी माँ

ममता आंसू और खुशी के
आईने में झलकती है मेरी माँ

 

 

 

मुझसे यूँ ना पूंछो कहाँ रहती है
मेरी मां

मेरे दिल के गहराइयों में बस्ती है
मेरी माँ

धुंधली आँखों के तस्वीर में भी
झलकती है मेरी माँ

जो शब्द भूले भी न भूले
उसे कहते है मेरी माँ

जिन्दगी के हर अहसास में सबसे नज़दीक
रहती है मेरी माँ

मुझे सबसे ज्यादा समझती है
मेरी माँ

जो शब्दों को न कह पाउ उसे आँखों में
तलाश लेती है मेरी माँ

मेरे हर मर्ज़ की दुआ होती है
मेरी माँ

हाथो में हाथ लेकर जब सुलाती है
मेरी माँ

दुनिया की सारी जन्नत दिखाती है
मेरी माँ

मुझे मंजिल के निशा दिखाती है
मेरी माँ
हर कदम को डगमगाने से बचाती है
मेरी माँ

यूँ ना पूंछो कहाँ रहती है
मेरी माँ

मेरे दिल के गहराइयों में बस्ती है
मेरी माँ

सबके आँखों का नूर होती है माँ
जिससे न रह सके कोई दूर वो होती है माँ

3 Comments

  1. kusumgokarn says:

    Rituji,
    Very sweet poem glorifying motherhood. Fine title.Sincere deeply felt thoughts that flow in a prayer-like form. Your mother must be so proud to have a loving & grateful daughter like you.A tender lovely picture to match the poem too.
    Best wishes.
    Kusum G.

  2. amit478874 says:

    वाह… एक से बढ़कर एक बेहतरीन पंक्तियाँ…! यूँ ही लिखते रहे…! 🙂

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