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फट चुकी है पौ बटोही जाग रे !
Hindi Poetry |
फट चुकी है पौ बटोही जाग रे !
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फट चुकी है पौ बटोही जाग रे !
दूर जाना है बटोही भाग रे !
बीहड़ों को देख कर तू रुक न जाना,
पर्वतों के सामने तू झुक न जाना,
लग न जाये बुझदिली का दाग रे !
धुन जगायी है तो धुन पर थाप दे,
तू सहारा खुद को अपने आप दे,
बुझ न जाये ये सुलगती आग रे !
मंजिलें चल कर कहाँ खुद पास आतीं,
वो खडी है देख तुझको है लुभातीं,
पास ही है वो फलों का बाग रे !
दर्द छालों का यहीं पर छोड़ दे,
गर्व से मन्जिल का ताला तोड़ दे,
वो मिलेगा जो सके तू माँग रे !
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
aasha ka man ko jagrit karne wala swar. Nishchit hi man se har chuke logo ke man me ummid ka ujala bharega.
Badhai.
आशाओं का संचार करता यह गीत अच्छा लगा
sundar aur prerak.
Bahut sundar manbhavan hai ye geet
pyaar se gungunaane kee hai badhiyaa cheez….
rachanaa ke liye hardik badhaaii