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फिर न करेगा शकील तू मुहोब्बत अगर इंसान होगा…..
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जज़्बातों का खुलेगा बादबाँ आहों का फिर तूफ़ान होगा
देखें मिलकर उनसे जीना मुश्किल के मरना आसन होगा
(बादबाँ – नाव पर बंधने वाला कपडा )
दिल लरज़ता है करके याद उनकी ज़ुल्मतें नदीम
ज़ख्म मिट भी गए कहीं तो रूह पर निशान होगा
(लरज़ता – दर से कांपना ) (नदीम – दोस्त )
गुफ्तगू बर तक्कलुफ़ हो भी जाये खुदा साज़ बात है
इधर की होंगी कुछ उधर की बातें न उन्वान होगा
(गुफ्तगू बर तक्कलुफ़ – असहज बातें )
फरिश्तों का जिस्म महताब सा साया मुझसे बचाए
वजूद ख़ुद मेरा वहाँ होने पर दिल से पशेमान होगा
(पशेमान – पछतावा ) ,(महताब -चाँद )
अबके देख लेते हैं मजबूर होकर मेरे दिल ने कहा
फिर न करेगा शकील तू मुहोब्बत अगर इंसान होगा
KHOOB KAHA. JULMATEN AAP NE KIS SENSE ME USE KIYA HAI SAMJAHYENGE. JULAMT TO ANDHERE KO KAHTE HAIN.
नज़्म मन भायी
बधाई
अगर लफ्जों के मायने नज़्म के बीच में न देकर एक साथ नज़्म के नीचें दें तो उन्हें समझ नज़्म पढ़ने में ज्यादा मज़ा आये. ये मेरा personal सुझाव है और कुछ नहीं,
बडिया नज़्म बधाई
Wahh shakeelsahab.. gazlon ki duniya ke Shakespeare hai aap.. har gazal itni kamal ki likhte hai, ki dil karta hai padhte hi reh jaaye.. Bahot khoob…..