« इंतिज़ार की इंतहा | तेरे नाम का इक अलग ज़ायका है. » |
कौन सा रस ?
Hindi Poetry |
कौन सा रस ?
हाँ तो बच्चो !
अब तुमने सब रसों के बारे में पढ़ लिया,
काव्य के नौ रसों के बाद,
एक और रस भी सुना,
वात्सल्य रस ।
अब मैं पूछूँगा,
तुम बताओगे ।
सुनो-
“नायक की बाँहों में नायिका,
नैन से नैन मिलाती,
विभिन्न आकर्षक क्रीड़ाएँ करती,
नायक को अपने हाथ से लड्डू खिलाती,
स्वच्छंद रूप से,
अपने प्रेम का इज़हार कर रही है।”
बताओ ! यहाँ पर कौन सा रस झलक रहा है ?
धन्य हो गुरु जी !
आप तो वास्तव में रसों की खान हैं,
वाह ! मुँह में पानी आ गया,
लड्डू के नाम से ।
धन्य हो “साहित्य रसोमणि” !
निःसन्देह,
आपने ग्यारहवां रस भी खोज निकाला,
सबका मनपसंद रस,
मीठा रस ।
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
rasikta ka uttam udaharan. anyatha-
arasikeshu kavitt nivedanam shirasi maa likh maa likh maa likh.
@siddhanathsingh, धन्यवाद एस.एन. साहब ! एक कवि का दर्द समझ सकता हूँ.
हार्दिक धन्यवाद और आभार.
धन्यवाद एस.एन. साहब ! एक कवि का दर्द समझ सकता हूँ.
हार्दिक धन्यवाद और आभार.
मनभावन रचना..! रसपूर्ण रचना…!
बहुत सरस रसभरी रचना
जिसका हास्यरस बहुत स्वादिष्ट है
हार्दिक बधाई . बहुत मन भायी
Hullo Harish,
Only a ‘rasik’ can think in this manner . I liked the use of the word ” Vatsalya ” . It ends on a nice note . Sensitive and humorous .
sarala