***तड़पते अफ़साने …***
आशिकों के भी अजब ठिकाने हुआ करते हैं
हसीं पलकों में इनके आशियाने हुआ करते हैं
दिल टूटता है तो ये कभी उफ़ नहीं करते
गम छुपाने को फकत पैमाने हुआ करते हैं
ज़ख़्म खाते हैं फिर भी उसी दर पे जाते हैं
यूँ इनके दुश्मन तो ज़माने हुआ करते हैं
जलते हैं रोज जिस शमा की मुहब्बत् में
शब होते ही ये उसके परवाने हुआ करते हैं
प्यार क्या करते है ये बेगुनाह गुनाह करते है
तासीर-ऐ-मुहब्बत् से ये अंजान हुआ करते हैं
करके सुपुर्द-ऐ-खाक ये खामोश हो जात्ते हैं
इनकी तुरबत पे तड़पते अफ़साने हुआ करते हैं
सुशील सरना
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जनाबेआला , यह तो भड़कते अफसाने लग रहे है . अल्फाज़ में थोड़ी सी रूहानियत की चासनी डालिए, मास्सहल्लाह दर्द-ए-दिल का मज़ा आ जायेगा.
@pankaj jha,
आपकी इस प्रतिक्रिया और सुझाव का शुक्रिया झा साहिब – ज्यादा चासनी सहेत के लिए अच्छी नहीं – स्वाद को स्वाद ही रहेने दीजिये – आनंद आएगा
bahut khoob kya andaze bayaan hai.
@siddha Nath Singh,
इस मधुर मुस्कान में लिपटी आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार सिंह साहिब
bahut khoob.
@siddha Nath Singh,
हार्दिक शुक्रिया सिंह साहिब