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फ़ातेहा दिल पर हम उसके दर पर पढ़ आये शकील…..
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ये क्या के जब भी चलूँ साथ मेरे ये सराब आये
कभी जगती कहकशां कभी भटकता महताब आये
(सराब – रेगिस्तान)
इस क़दर मानुस हुई हैं शहर की सुनसान गलियाँ
करूँ सलाम तो कोने कोने से विरानो के जवाब आये
(मानुस – परिचित)
हर्फ़ हर्फ़ जिसका लख्त लख्त जाना है जिसे मैंने अब तक
मुमकिन है जलती वर्क वर्क मुझ तक वो किताब आये
(वर्क वर्क – पन्ना पन्ना)
नशा वो चाहिए के सुरूर के साथ उतरे मौजे ज़िन्दगी
देखना साक़ी शिफा-ए-ज़ीस्त से भीगी हुई शराब आये
(शिफा-ए-ज़ीस्त – जिंदगियों का इलाज)
क़फ़स के सलाखों से छनकर आती है सदा-ए-अन्दिली
मेरी बला से ए दोस्त अब कभी तेरे चमन पर शबाब आये
(सदा-ए-अन्दिली- बुलबुल की आवाज़)
मूंह पर रख दामन-ए-रिश्ता रो पड़े हैं मरासिम कल
दिल कहता है फटे ज़मीं और आज ही आजाब आये
(मरासिम-गुज़रे हुए खुशनुमा दिन)
फ़ातेहा दिल पर हम उसके दर पर पढ़ आये शकील
किया दफ़न अरमानो को शायद ज़िन्दगी में इंक़लाब आये
bahut khoob.
नशा वो चाहिए के सुरूर के साथ उतरे मौजे ज़िन्दगी
देखना साक़ी शिफा-ए-ज़ीस्त से भीगी हुई शराब आये
बहुत खूब
beautiful…. par aap keh rahe the..ki aap choti panktiyaan likhne wale hai… I m waiting for that…