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बहता जल हूँ मैं
Hindi Poetry |
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बहता जल हूँ मैं
बहता जल हूँ मैं ,
मुझे अफ़सोस नहीं ,
कि कोई मुझमें
कालिख धो कर चला गया
अगर ,
तुम्हारी ही मैं बात करूं
तो क्या सोचा था तुमने
कि तुम्हारे बिछुड़ने से मैं
उदास हो जाऊंगा
छोड़ कर तुम्हे /आगे बढूँगा मैं
तो / मुड़- मुड़ कर ,
देखूंगा पीछे बार- बार
या फिर / यदि
आगे निकल जाओगे तुम
तो दौडूंगा तुम्हे पकड़ने को
तुम्हारे पीछे
क्यों ?
क्योंकि तुम्हारा और मेरा
रहा है साथ कुछ पल का
और इसी से शायद
तुम पाल बैठे हो यह भ्रम
कि तुम्हारे बिछुड़ने से
मैं उदास हो जाऊंगा
शायद नहीं जानते तुम
कि /तुम्हारे मिलने से पहले
मैं तय कर आया था
एक लम्बा सफर
मैं बढ़ता चला आया था
कई संकरी घटिओं और
तेज़ ढलानों से होकर
तब मिले थे तुम मुझे
समतल मैदान में
किनारे खड़े पेड़ों की छाया में
मेरे इंतज़ार में
मेरे स्पर्श से /अपने हाथों व
तन की कालिख धोने के लिए
मैं बहता जल था ,
कालिख धोना मेरा धर्म था
हर बहते जल की तरह
निभाया मैंने भी अपना धर्म
समेटा तुम्हारी कालिख को अपने में
और चलता रहा अपनी राह
आगे पीछे देखते हुए
और तुम ?
तुम खड़े रहे वहीं
अपनी कालिख को मेरे साथ
बहता हुआ देखने के लिए
नहीं चल सके तुम
दो कदम भी साथ मेरे
साथ मेरा देने को
तो / आज मुझे अफ़सोस क्या
तुम्हारे बिछुड़ने का
और फिर …
किनारे और किनारों पर पड़े पत्थर
कब किसके साथ बहे हैं
शाम होते -होते तो / उनकी छाया भी
जल का साथ छोड़ जाती है
और जल ?
जल बहता रहता है निरंतर
इसी आशा में / कि
किनारों पर खिले कुछ फूल यदि
पीछे छूट गए तो क्या
नई सुबह नए फूल लेकर ,
स्वागत करेगी
हाँ ,
बहता जल हूँ मैं आज भी
अगर अब भी ,कोई कालिख
लगे तुम्हारे तन पर
तो चले आना मेरे पास
दे जाना अपनी सब कालिख मुझे
और लौट जाना फिर से अपनी
उजली दुनिया में
तुम्हारी ख़ुशी के लिए
मैं तब भी
यूँ ही मुस्कुराता रहूँगा
क्यों ?
क्योंकि बगता जल हूँ मैं
मुझे अफ़सोस नहीं कि
रास्ते में मुझे क्या मिला
और मैंने क्या खोया
जो मेरा था / वो
मेरे साथ बहता आया
जो मेरा नहीं था
वो या तो मुझमे डूब मरा
और बैठ गया मेरी गहराइयों में
कलेजे पर रखे एक भारी पत्थर कि तरह
या फिर खड़ा रहा किनारे पर
अपने चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान लिए
यह कहने के लिए / कि यह देखो
वो जा रहा है निर्मल जल
किसी की कालिख को अपने साथ लिए
तो ऐसे में
मैं अफ़सोस क्या करूँ / किसी से बिछुड़ने का
यदि मै बहता रहा
तो /बहते जल में
कालिख धोने वाले
कदम -कदम पर
और बहुत मिल जाएँगे /जो
लौट जाएँगे तुम्हारी तरह
फिर से अपनी दुनिया में
उसी दुनिया में
जो उपर से उजली है
पर अंदर से बहुत काली है
पर इससे मुझे क्या लेना
बहता जल हूँ मैं
कालिख धोना मेरा धर्म है …..
– आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
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Anand ,
I felt the movement of mankind, the religion of man and the ultimate uniting force of water to cleanse and nurture mankind. The water is at once constant yet moving, soot laden and then clean.
Very moving if I am reading it correctly as I have a hard time with Hindi syntax.
Thank you for the reading.
Matt
@mattbugno, Anand,
Please follow up with me as I am learning Hindi and care for assurance I have interpreted the poem correctly.
Thank you,
Matt
mattbugno ji thankyuo verimuch for the comment!
-anand prakash ‘artist’