« »

“भूत की प्रेत-यात्रा”

1 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 5
Loading...
Hindi Poetry, Jun 2011 Contest
हम भी कभी इंसान हुआ करते थे,
हममें भी जान और जहान हुआ करते थे.
अंतिम दिनों में हमने तीर्थयात्रा थे किये,
आज प्रेत यात्रा में हैं भटक रहे,
अदृश्य होकर यह दुनिया भी हम देख रहे.
हर तरफ है हाहाकार मची,
प्रकृति इंसानोसे है रूठ गयी.
जापान को सुनामी की लहरेनिगल गईं,
छोटे – छोटे  द्वीप भी सारे डूब गये,
न्यूक्लियर रियक्टर से दूषित वायु फैली.
अंटार्टिका है तेजी से पिघल रहा ,
जलस्तर भी तेजी से बढ़ता जा रहा.
प्रकृति का प्रहार सजीवों पर भारी पड़ रहा.
कुदरत इंसानो से क्यों न रूठे ,
जंगलो में पेड़ भी अब नही रहे.
मानव ने है प्रकृति के सारे नियम तोड़े,
भ्रष्टाचार,धोखाधड़ी,डकैत और चोरी ,
बदलते जमाने में है यही फैशन चली.
हम भी थे उसी पाप के भागीदार,
अब तो छोड़ चुके हेम पापी संसार.
भटकने की मिली है हमें सजा ,
जीवन में हमने किये थे कई गुनाह.
ऐ मानव जाती, पर तुम देना प्रकृति का साथ,
जंगल लगाकर, प्रदुषण बचाकर ,
आनेवाली दुनिया को देना जीवनदान.
आत्मा हमारी सदियों से विरानो में  भटक रही,
गलती सुधार कर  करना प्रायश्चित्त हमारा ,
वरना आत्मा हमारी मुक्ति की खातिर भटकती रहेगी ………….भूत..
राजश्री राजभर………

8 Comments

  1. siddha Nath Singh says:

    font bada aur spelling me sudhaar do sujhaav dunga. achchhi sandeshvahak panktiyan.

  2. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर अंदाज़ और रचना में वैचारिक प्रस्तुति
    कुछ गलत छपे शब्दों को एडिट कर सुधारना जरूरी
    इस संदेशपर मनभावन रचना के लिए हार्दिक बधाई …

  3. rajdeep bhattacharya says:

    liked it dear

  4. rajdeep bhattacharya says:

    I liked the poem so much

  5. harnek says:

    very nice poem rajshree ji .

Leave a Reply