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“भूत की प्रेत-यात्रा”
Hindi Poetry, Jun 2011 Contest |
हम भी कभी इंसान हुआ करते थे,
हममें भी जान और जहान हुआ करते थे.
अंतिम दिनों में हमने तीर्थयात्रा थे किये,
आज प्रेत यात्रा में हैं भटक रहे,
अदृश्य होकर यह दुनिया भी हम देख रहे.
हर तरफ है हाहाकार मची,
प्रकृति इंसानोसे है रूठ गयी.
जापान को सुनामी की लहरेनिगल गईं,
छोटे – छोटे द्वीप भी सारे डूब गये,
न्यूक्लियर रियक्टर से दूषित वायु फैली.
अंटार्टिका है तेजी से पिघल रहा ,
जलस्तर भी तेजी से बढ़ता जा रहा.
प्रकृति का प्रहार सजीवों पर भारी पड़ रहा.
कुदरत इंसानो से क्यों न रूठे ,
जंगलो में पेड़ भी अब नही रहे.
मानव ने है प्रकृति के सारे नियम तोड़े,
भ्रष्टाचार,धोखाधड़ी,डकैत और चोरी ,
बदलते जमाने में है यही फैशन चली.
हम भी थे उसी पाप के भागीदार,
अब तो छोड़ चुके हेम पापी संसार.
भटकने की मिली है हमें सजा ,
जीवन में हमने किये थे कई गुनाह.
ऐ मानव जाती, पर तुम देना प्रकृति का साथ,
जंगल लगाकर, प्रदुषण बचाकर ,
आनेवाली दुनिया को देना जीवनदान.
आत्मा हमारी सदियों से विरानो में भटक रही,
गलती सुधार कर करना प्रायश्चित्त हमारा ,
वरना आत्मा हमारी मुक्ति की खातिर भटकती रहेगी ………….भूत..
राजश्री राजभर………
font bada aur spelling me sudhaar do sujhaav dunga. achchhi sandeshvahak panktiyan.
thanx alot sir for ur suggestion n thanx for ur comments.
बहुत सुन्दर अंदाज़ और रचना में वैचारिक प्रस्तुति
कुछ गलत छपे शब्दों को एडिट कर सुधारना जरूरी
इस संदेशपर मनभावन रचना के लिए हार्दिक बधाई …
thank u so much sir for encoraging n liking my poem.
liked it dear
I liked the poem so much
thank u so much rajdeepji for ur comment.
very nice poem rajshree ji .