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सपने
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
सपने
ख़्वाबों के पंख लगा
उड़ चली मैं सपनों के देश में
ऊपर बहुत ऊपर दूर गगन में
खोने का कुछ गम नहीं
पाने का दंभ नहीं
निश्चिन्त निर्विकार बहते जाना
चिंता नहीं कि कोई मंजिल पाना
व्योम की ऊंचाइयों की सैर में डूबी
स्वर्ग के से सुख का आनंद लेती बखूबी
लौटने का मन नहीं पर निद्रा टूटी
लौट गिरी शैय्या पर
सोचने लगी गहरी साँस भर
क्या इसी जग में है नीड़ अपना
ऊपर बहुत ऊपर दूर गगन में
खोने का कुछ गम नहीं
पाने का दंभ नहीं
निश्चिन्त निर्विकार बहते जाना
चिंता नहीं कि कोई मंजिल पाना
व्योम की ऊंचाइयों की सैर में डूबी
स्वर्ग के से सुख का आनंद लेती बखूबी
लौटने का मन नहीं पर निद्रा टूटी
लौट गिरी शैय्या पर
सोचने लगी गहरी साँस भर
क्या इसी जग में है नीड़ अपना
भंग हुआ ज्यों सपना
यहाँ आस पास तो
अब कितना तुच्छ सब लग रहा
भागते लोग मृग-मरीचिकाओं के पीछे
आँख बन्द किये साँस खींचे
ऐसे तो प्यास किसकी बुझी है
पर आस है कि अटकी रही है
ज़िंदगी भी तो है एक छलना
कब तक साथ देगी अपना
भंग होगा यह भी सपना !
संतोष भाउवाला
सटीक और मार्मिक रचना ! कई बार तो लगता है कि बंद आँखों से दिखायी देनेवाली दुनिया खुली आँखों की दुनिया से कहीं बेहतर होती है !
बहुत अच्छी रचना ! बधाई !
@Harish Chandra Lohumi,
shukriya aabhaari hoon
sundar aur manbhavan
badhiyaa andaaz
@Vishvnand,
aashirwaad ke liye aabhaari hoon