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कल का सपना

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Hindi Poetry, Jul 2011 Contest

कहते थे जब कहने को कुछ तब तो तुमने कहा नहीं
अब कहते हो जब कहने को शेष जरा भी रहा नहीं.

कहने को तो मैं भी कह दूँ – याद आज भी मैं करता हूँ
लिखने को तो मैं भी लिख दूँ – तुझपे वैसे ही मरता हूँ.

पर इन बातों का कोई अब धुंधला सा भी अर्थ नहीं है
एकाकी जीना इतने दिन, मेरा – तेरा व्यर्थ नहीं है.

सच में याद नहीं तुमको भी – मेरा चेहरा, मेरी बातें
सच में याद नहीं तुमको भी – अलबेली अँधेरी रातें.

बस थोड़ी सी जिद है अन्दर, अहंकार ऐंठा है थोड़ा
और अनजानों की दस्तक का डर भी तो बैठा है थोड़ा.

पर मैं ठहरा कल का सपना, मैं कल ही को बीत गया था
जिस दिन तेरी सुबह हुई थी, उस दिन ही मैं रीत गया था.

4 Comments

  1. siddha Nath Singh says:

    bahut hi lajavab kavita is vikash ko vikas ke charmotkarsh par dekh khushi hui.

  2. Vishvnand says:

    क्या बात है, अति सुंदर मनमोहन

    कविता ही क्या, ये है अति सुन्दर गीत रचा
    लय में गाने से अर्थपूर्ण पाया सच इसमें मजा बड़ा
    “पर मैं ठहरा कल का सपना, मैं कल ही को था बीत गया
    जिस दिन तेरी थी सुबह हुई, उस दिन ही मैं था रीत गया “.

    too beautiful
    Hearty Kudos…
    Stars 5 + + +

  3. सपनो के कुछ अर्थ बताओ रूठी उमंगो को समझाओ
    मन से क्यों न नाग निकाले अंतर्मन को बना शिवाले

  4. youknowho says:

    Who was that man she knew,
    Just a mirage, hope against hope?
    Was he ‘the one’, her desire anew,
    Or her desperate last tug at the end of the rope?

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