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खामोशी पे मुझे बेवफाई के इल्जाम मिले…..
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यादों से तेरी दिल को कभी आराम तो मिले
हसरत ही रही हमे कोई सुहानी शाम मिले
देखकर चलो है फैला खूने दिल मेरा हर तरफ
मुमकिन है हर कतरे में उनका नाम मिले
मैं चुप ख़ुशी से उनकी ज़हर भी पी गया
खामोशी पे मुझे बेवफाई के इल्जाम मिले
कौन है कह दे की पिघलता नहीं पत्थर
पिघल एक बार मुझे अश्कों के इनाम मिले
है किस सफ़र में ज़िन्दगी क्या तलाश जाने
थक गया हूँ मंजिल नहीं तो कोई मकाम मिले
प्यास सुलग उठी लबों पर तपते तपते मेरी
हो नमकीन ही सही समन्दर मुझे तमाम मिले
बेवफाइयों को दबाया था मैंने दिल की ज़मीं पर
सच है ये शकील बोया बाबुल तो कहाँ आम मिले
क्या बात है, बहुत खूब
देर आये दुरुस्त आये, … आये तो
पढ़कर आपकी नज़्म गम में भी सुकून मिले
hearty commends