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चिटकनी
Hindi Poetry |
चिटकनी
अजी सो गये क्या,
जरा उठिये ना,
मुझसे फ़िर बन्द नहीं हो पा रही,
इस दरवाजे की चिटकनी ।
तुम भी सोचते होगे,
रोज-रोज मुझे परेशान करती है,
रोज-रोज मुझे नींद से जगाती है ।
क्या करूँ,
मुझसे ये बन्द ही नहीं होती,
बड़ी मुसीबत हो जाती है,
जब तुम कभी चले जाते हो,
एक-दो दिन के लिये भी बाहर,
मैं सो नहीं पाती हूँ ,
चिटकनी के बन्द न हो पाने से ।
अजी सुनती हो,
जरा देखो तो,
आज मैनें चिटकनी ठीक करवा दी है,
तुम्हारे हर रोज की मुसीबत,
हमेशा के लिये दूर कर दी है,
अब तुम इसे आसानी से बन्द कर सकती हो,
और मेरे चले जाने के बाद,
बिना किसी मुसीबत के,
तुम आराम से सो सकती हो ।
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
सुन्दर, ज़मीनी बयान…सलाम हरीश जी!
@Reetesh Sabr, हार्दिक आभार और सप्रेम धन्यवाद रीतेश जी !
kuchh hai jo meri pakad se chhoot raha hai, arth vyanjana abhi pare hai, kash aap samajhayenge.
@s.n.singh, कुछ तो छूटा आपकी पकड़ से एस.एन. साहब ! वरना किसी की क्या मजाल ! 🙂
सुन्दर रचना
बड़ी खुश हुई है अपने पर रचना पढ़ ये कवि की भूली हुई चिटकनी
कहती है मेरा ख़याल तो आया अगर मैं न होती तो कैसे करते मनमानी …
Stars 4 +++
@Vishvnand, हार्दिक आभार और धन्यवाद सर ! आखिर आपने कह ही दिया कि …………………………… लौक कर दिया जाय ! 🙂
चटकनी बंद नहीं हो है nice कविता यथार्थ है हर एक की लाइफ में चिटकनी बंद नहीं हो रही है हर आदमी जाग रहा है दिमाग(पत्नी) कह रही अबकी चिटकनी बंद कर दीजिये लेकिन सहारा नहीं मिल्पा रहा