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“तथास्तु”
Hindi Poetry |
“तथास्तु”
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प्राचीन काल में सार्थक होता था आकांक्षा हेतु ‘तथास्तु’,
ऋषि-मुनि-तपस्वी एवं देव-देवेश्वर ही सक्षम थे इस हेतु !
उनकी वाणी में थी ज्ञानेश्वरी जो इसको करती थी साकार,
ऐसा था तपोबल उनका जो कर सकता था कोई चमत्कार !
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प्राचीन काल में सार्थक होता था आकांक्षा हेतु ‘तथास्तु’,
ऋषि-मुनि-तपस्वी एवं देव-देवेश्वर ही सक्षम थे इस हेतु !
उनकी वाणी में थी ज्ञानेश्वरी जो इसको करती थी साकार,
ऐसा था तपोबल उनका जो कर सकता था कोई चमत्कार !
किन्तु क्या कोई अब ऐसा है जो तथास्तु करता सार्थक ?
नहीं कदाचित कोई अब ऐसा, प्रायः पाखंडी हैं पथप्रदर्शक !
कहते हैं ऐसा तब होता आया होगा केवल ही सतयुग में,
ज्ञानी-ध्यानी, साधु-संत-तपस्वी आज भी हैं कलियुग में !
किन्तु आज के साधु-संत केवल धन-दौलत के ही भोगी हैं,
घिसे-पिटे, रटे-रटाये भाषण देते इक दूजे के प्रतियोगी हैं !
धर्म-प्रचार की ओट में इनके पंडालों में धन की ही लूट है,
धर्म के नाम पर ही इन्हैं ऐसी अपरोक्ष लूट की पूरी छूट है !
ये ही है तथ्यात्मक स्थिति जिसे क्यों न समझती जनता,
क्यों एकत्रित होते हैं नर-नारी जब भी इनका तम्बू तनता !
यदि हम तनिक भी बुद्धिमान हैं तो क्यों ऐसा प्रोत्साहन दें ?
इनके दूर-दूरस्थ आवागमन हेतु क्यों कोई शाही वाहन दें ?
मुझसे जब कोई भी करता इनके प्रवचन सुनने का आग्रह,
आजाती है हंसी मुझको, मैं ना कहके इसे बताता दुराग्रह !
जब मैं कभी पढ़ता समाचार इनके प्रवचन का अखबार में,
कोई भी ऐसी बात नहिं आती जो नहीं हो हमारे विचार में !
धर्म-ग्रन्थ भरे पड़े हैं हमारे, विस्तृत आध्यात्मिक ज्ञान से,
उनमें सब कुछ मिल जाएगा अध्ययन करने पर ध्यान से !
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घिसे-पिटे, रटे-रटाये भाषण देते इक दूजे के प्रतियोगी हैं !
धर्म-प्रचार की ओट में इनके पंडालों में धन की ही लूट है,
धर्म के नाम पर ही इन्हैं ऐसी अपरोक्ष लूट की पूरी छूट है !
ये ही है तथ्यात्मक स्थिति जिसे क्यों न समझती जनता,
क्यों एकत्रित होते हैं नर-नारी जब भी इनका तम्बू तनता !
यदि हम तनिक भी बुद्धिमान हैं तो क्यों ऐसा प्रोत्साहन दें ?
इनके दूर-दूरस्थ आवागमन हेतु क्यों कोई शाही वाहन दें ?
मुझसे जब कोई भी करता इनके प्रवचन सुनने का आग्रह,
आजाती है हंसी मुझको, मैं ना कहके इसे बताता दुराग्रह !
जब मैं कभी पढ़ता समाचार इनके प्रवचन का अखबार में,
कोई भी ऐसी बात नहिं आती जो नहीं हो हमारे विचार में !
धर्म-ग्रन्थ भरे पड़े हैं हमारे, विस्तृत आध्यात्मिक ज्ञान से,
उनमें सब कुछ मिल जाएगा अध्ययन करने पर ध्यान से !
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सटीक रचना ! बधाई !
@Harish Chandra Lohumi,
धन्यवाद !
Nice write no doubt.
commends.
This is one way of looking at things no doubt.
I have but some difference of opinion on this.
Hearing discourses from learned saints has its own profound value in our gaining knowledge in spirituality & our progress than just reading & studying from books by ourselves which of course is also important.
@Vishvnand, You might be right at your angle, Sir ! what I mean is not that with respect to
maturing of ‘तथास्तु” ! The poem absolutely pleads that there
is hardly any साधु-संत-तपस्वी now who could bid ‘तथास्तु’ upon
any devotee so as to accomplish his/her wishes !