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दाल नहीं गलनी है बाबा
Hindi Poetry |
दाल नहीं गलनी है बाबा
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जी ले जी भर अभी जवानी, उम्र अभी ढलनी है बाबा,
कब तक चोटी पर बैठोगे, बरफ़ अभी गलनी है बाबा .
रोपे जा पौधे गुमान के, मनसा ना फलनी है बाबा,
बादल हैं घनघोर बहुत पर, बारिश ये टलनी है बाबा .
रिसना है चुल्लू का पानी, आखिर यह छलनी है बाबा,
खूब सजा ले देह अभी तू, राख अभी मलनी है बाबा .
बातें जो तू खूब सुनाता, तुझको भी खलनी है बाबा,
यादें दर्द सरीखी तेरे, दिल में भी पलनी हैं बाबा .
अभी चले हो कुछ ही तो पग, गली बहुत चलनी है बाबा,
भोग छांव का कर ले जी भर, देह अभी जलनी है बाबा.
चौड़े इस सीने पर तेरे, उरद अभी दलनी है बाबा,
कुछ भी कर ले बिलकुल तेरी, दाल नहीं गलनी है बाबा .
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
bel pyar kee dheer dheere badhni hai falni hai baba.
@siddha Nath Singh, अपनी तो अपनी तो ये नज़्म है नकली, असली तो तेरी है बाबा . 🙂
Harish jee good one..
Regards
Vimal
@Vimal, Thanks a lot Vimal Ji !
बहुत खूब, इस गीत की गरिमा ऐसी मजा आगया हमको बाबा
दुनिया रंग रंगीली बाबा दुनिया रंग रंगीली
पढ़कर प्यारा गीत नया ये आगयी याद पुरानी बाबा
Liked immensely
hearty commends
@Vishvnand, हार्दिक आभार और धन्यवाद सर !
हमने तो बस यूं ही अपने दिल की कसक लिखी है बाबा !