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दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
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दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे ..।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे…।
मन के है पंख ,पर बहुत छोटे
आकाशी सपनो के सामने
कद कितना बौना है, तन के म्रग छौने का
पलकों का बोझ चले नापने
आओं छत ओढ लें ,भागते समय की
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे…।
दूर कहीँ नींद उड़ी जाये रे…।
स्वप्नो के ढेर ,सच कहाँ होंगें
भूल चले शक संवत इतिहास को
पेरौं के नीचे जमीन कहाँ
दौड़ पड़े छूने इस ऊँचें आकाश को
तानते रहें चादर ,अनसिले कमीज की
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे…।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे….।
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे…।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे…।
कमलेश कुमार दीवान
ati manoram geetika. Badhayi ho Deevan ji,deevana kar gaye paathakon ko.
मंच कोई भी हो, माँ सरस्वती के इस पूत अपनी अमित पहचान बनाने का वर प्राप्त है.
शानदार-अदभुद