“धुनी ही धनी”
“धुनी ही धनी”
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दशकों से कर रहा परिश्रम करके बहुत कमाई,
संयम और संतुलन से बचाई मैंने एक एक पाई !
इतना धनी हो गया मैं कि निधन होने पर भी धनी,
सात पीदियाँ भी धनी रहके बसर करेंगी बनी-ठनी !
करो परिश्रम सतत लगन से, सफलता ही पाओगे,
ध्यान रहे जैसा बोओगे वैसा ही फल उपजावगे !
वर्तमान को समझ-बूझ कर ही सुखद भविष्य बनाओ,
लक्ष्मी का महत्व जानो और ऊसकी पूजा अपनाओ !
इस दुनिया में दो ही हैं जो कहलाते रुपया और पहिया,
ये ही हैं जो हमारी बहती जीवन-नैया के दो ही खेवैया !
जीवन से मरणपर्यंत इनके बिना नहिं चलता है काम,
मरणोपरांत भी क्रिया-कर्म करने के होगये ऊंचे दाम !
अतः रहो सतर्क, त्यागो अपव्यय और सारे दुराचरण,
धन जोड़ो इतना जो पर्याप्त हो जब तक होता है मरण !
जाना पड़े न ताकि किसी व्यवसायी साहूकार की शरण,
यही रहे स्वाभिमान सदा जिससे संतुष्ट रहे अंतःकरण !
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achchhi updeshatmak kavita.
@siddha Nath Singh, साभार
धन्यवाद !
बहुत खूब, सुन्दर रचना
बात बहुत सही है, ऐसा ही सुन्दर जीना है हमें अपना जीवन
कि सदा स्वाभिमान रहे, प्रभुप्रेम रहे और रहे संतुष्ट अंतःकरण ….
इस पोस्टिंग के लिए हार्दिक धन्यवाद और अभिवादन
@Vishvnand, साभार धन्यवाद.!