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धोखा, धोखा, धोखा,
Jul 2011 Contest |
धोखा तासीर नहीं तकदीर नहीं
ये कुदरत की कोई जागीर नहीं
यह बनावट के उसूलो में जन्मी
हम मुल्हिद है इनके आगाज़ में , जो रिश्तो में जमी
धोखा तो उन्माद है , प्रमाद है
हर आम-ऐ-शख्स में आबाद है
धोखा आन है ना मान है
ये तो फरेबो की शान है
धोखा तासीर नहीं तकदीर नहीं
ये कुदरत की कोई जागीर नहीं
विश्वासघात है नाजुक दिलो का कोना
धोखा नाम है भरोसा पाकर खोना
छलता है विश्वास को , प्यार को
दर्द-ऐ-गमो में एतबार को
उल्फत की जंजीरों में अजाम देता है
फरेब की दीवारों में आयाम देता है
ये बेबाक है अपनी फितरत से
बरसात है अपनी निहायत से
धोखा तालीब नहीं तालीम नहीं
यह हमारी फितरत में शामिल नहीं
धोखा तासीर नहीं तकदीर नहीं
ये कुदरत की कोई जागीर नहीं
ऋतु राय
अच्छी रचना , 4 stars
धोखा धोखा धोखा
धोखा नहीं है,
ये समझना है इक बड़ा धोखा
पर हर जगह धोखा है
ये समझना है दुखी जीवन को नेवता
यही है धोखे का बड़ा धोखा….
नही समझ आता क्या किया जाय
इस धोखे का…