परिवार नया…
एक आश्रम का मैंने दरवाजा खटखटाया, भीतर से एक औरत का पर्सनाल्टा बाहर आया,
उसने कहा "कहिये कौन है आप ?",मैंने कहा "एक आदमी रहता था यंहा 'इमान चन्द्र ' था नाम,
मै 'कंगाली' हूँ मुझे 'इमान चन्द्र' से है काम.
उसने कहा "इमान चन्द्र को गए तो अरसा बीत गया ,पिछले चार सालो से रह रहा है मेरा परिवार नया,
मेरे पति 'पद' की महिमा न्यारी है ,साथ में इनके अदभुत एक खुमारी है ,
इनकी इक्छुक अब तो जनता सारी है,लड़ते रहते खातिर इनके कहके "मेरी बारी है ".
बेटे दो जवान है मेरे ,'बेईमानी ' और 'भ्रस्टाचार ',साथ साथ बढ़ते है दोनों, जुड़े ही रहते इनके तार.
राजनीती हो ,हो नौकरशाही या फिर हो कोई व्यापर,लाख जतन करने पे भी कोई न पाता इनसे पार.
बढ़ते दिन दिन ,पलछिन ये तो पर कुछ तो हेरेफेरी है, अपनाया है लोगो ने ,पर दिखलाने में देरी है,
भ्रष्ट हुए सब लोग यंहा पर ,पर कहते हम तो भ्रष्ट नहीं ,नहीं शिकायत लोगो से 'इमान' ने बुद्धि फेरी है.
पर मुझे है विश्वास ये पक्का,संकट इनके कट जायेंगे ,
आज नहीं तो कल ,इमान के धुंधले बदल भी छट जायेंगे
एक नटखट प्यारी बेटी भी है साथ हमारे, अब चलते है घर कितने इस बेटी के सहारे.
'घूस' कहो या कह लो इसको 'रिश्वत' तुम, है 'मास्टर की', ये हर ताले की प्यारे.
उंच नीच और जात धरम का भेद न करती,बस 'काम करा लो, काम करा लो', ये यही पुकारे.
हो काम कोई सा भी ये इंकार न करती, बस मांगे है ये तो कुछ नोट करारे."
मै था विस्मित और विस्मित था मन सारा,अब सोच रहा मुझ 'कंगाली' का कंहा गुजारा,?
मै था घबराया मित्र की चिंता लगी सताने, अब खोजू तुमको कंहा ?ठिकाना किधर तुम्हारा ?
देख मुझे घबराया वो भी जरा पसीजी, खुद पे इतराई और बोली "बेबी टेक इट इज़ी " ,
मै 'जुगाड़' हूँ मेरा कनेक्शन बड़ा है तगड़ा, मै सुल्झाऊंगी ये तेरा सारा लफड़ा,
शरण में मेरे आता जो अँधा या लंगड़ा , करता वो भी झूम झूम के डिस्को भंगड़ा ,
कर दूंगी तुझको फिट कंही तू टेंशन न ले ,बस नाम बदल तू अपना 'ऐश्वर्य' रख ले .
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achchha vyangya, kahin kahin Shail Chaturvedi kee prasiddh kavita ke samanantar chalta hua.
@siddha nath singh ji
bahut shukriya.. kya mai jaan sakta hun shail chaturvedi ji ke kis kavita ke bare me aap kah rahe hai, mai nischit roop se wo kavita padhna chahunga. kripya ho sake to awashy bataye.
बहुत बढ़िया और मजेदार पोस्टिंग है
कल्पना और कथन दोनों बहुत सुन्दर और उत्तम
मनभावन…इस अलग सी रचना के लिए हार्दिक अभिवादन …
@ विश्वनंद जी
बहुत बहुत शुक्रिया