« “धुनी ही धनी” | In the life of » |
पी इस क़दर के रात मैकदे में सैलाब आया…..
Uncategorized |
पी इस क़दर के रात मैकदे में सैलाब आया
हुए मदहोश मगर न हमपर रंगे शराब आया
कितने ज़ख्म तुझसे कौन सा बख्शा ज़माने ने
बिखरे हैं दिल पर हमे न कभी ये हिसाब आया
क़ैद हुई नाउम्मीद होकर बहारों से क्यों अन्दिली
क़फ़स से देखती है गुलशन में जो शबाब आया
(अन्दिली-बुलबुल ), (क़फ़स – क़ैद)
सबकी छतों पर सावन नाचता रहा बेसुध होकर
मेरे हिस्से में ही जेठ का क्यों ये आजाब आया
साबित हुईं वफाएँ मेरी जब मुझ पर जुर्म शकील
याद कल वो मासूम दोस्त मुझे बेहिसाब आया
बहुत सुन्दर, हर शेर बहुत मनभाये
हार्दिक शुक्रिया…
Stars 4
साबित हुईं वफाएँ मेरी जब मुझ पर जुर्म शकील
याद कल वो मासूम दोस्त मुझे बेहिसाब आया …. bahut khuub
साबित हुईं देश पर जिनकी वफाएँ जब, उनपर ही जुर्म लादा
इस बेवफा सरकारी न्यायिक चमचों ने हर तरफ बड़ा गज़ब ढाया ….
achchhi lagi.
Hi
Badiya , .Liked the first line a lot .
sarala
बहुत अच्छी.