प्रकृति का सार
क्या कहता धरती का प्यार
मन में धरो तुम धैर्य अपार
बिना थमे तुम चलते जाओ
बाधाओं से मत घबराओ
पर्वत बोले क्या,ताने सीना
हमेशा आत्मविश्वास से जीना
खुद को इतना महान बनाओ
गौरव का अम्बर छू जाओ
पानी की है इतनी सीख
सबसे सामान रख तू मीत
छोटे-बड़े का भेद न करना
ममता इतनी खुद में भरना
वायु बहती कहती जाये
खुशबु कण-कण में भर जाये
रखना खुद में इतना सुवास
रक्खें सब मदद की आस
अग्नि क्या कहती सुन जाओ
स्नेह से अपने सबको पिघलाओ
भले बुरे का समझो अंतर
जानो क्या जीवन का मंतर
सम्पूर्ण प्रकृति का ये सार
मानो तुम इनका आभार ||
Related