« अकूत संपत्ति का कौन है पति ? | गीत : किसने कहा है कि आप राज खोलिए » |
हे अनामिके, तुम कौन हो !
Hindi Poetry |
हे अनामिके, तुम कौन हो !
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ऋतुओं में हो तुम बसन्त सी,
सावन के मौसमी महंत सी,
इन्द्रधनुष से बहुरंगी स्वर,
ना जाने किस नवल छंद सी,
लघु सरिता सी कल-कल छल-छल,
चंदन वन सी तुम्ही पौन हो,
हे अनामिके तुम कौन हो !
चंचल चितवन, हे मादक तन !
पल प्रतिपल यह मौन निमंत्रण,
सँवरे केश सघन हों ज्यों घन,
हे हिय प्रिय, हे म्रृदु आकर्षण,
अधरों पर यह रह-रह कम्पन,
शब्द रहित कोई उच्चारण,
खोया खोया स्वतः नियंत्रण ,
कई प्रश्न, है कौन सा कारण,
कुछ कहने को आतुर सी तुम,
फ़िर भी तुम क्यों खडी मौन हो,
हे अनामिके, तुम कौन हो !
नवल प्रीत की राजनीति सी,
खुद में इक सम्पूर्ण कीर्ति सी,
प्रीत-युद्ध में अपराजित सी,
लगती हो खुद विजय रीति सी,
कोटि चन्द्र जिसने ललकारे,
अक्षत हे ! तुम वही यौन हो,
हे अनामिके, तुम कौन हो !
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
भई वाह, बहुत खूब….
kavitaa ये मन भायी है
अलग सी सुन्दर प्यारी है
माहौल बना सुखदायी है
sharing के लिए बधाई है