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माटी
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
माटी
बोली माटी कुम्हार से
हूँ तो निरी माटी ही
एक दिन माटी
में ही मिल जाउंगी
कभी धूल बन ,
आँखों की किरकिरी बनती
बंजर धरती बन,
धरा की छाती पर सवार होती
गर पानी पड़ जाता तो ,
कीचड़ बन जाती
पर तुने मुझे उठाया,
चाक पर बैठाया
अपने हाथों से
भांति भांति के रूप बनाया
जब घड़ा बनी ,
लोगो की प्यास बुझाई
गमला बनी
पोधों को नव जीवन दी
हरियाली बन
खेतों में लहराई
बालू बन
घरोंदों के काम आई
कुल्हड़ बन
पानी पिलाने का सुख पाई
दिया बन
मंदिर में ज्योत जलाई
तो किसी की अँधेरी
झोपड़ी का उजाला बन छाई
मै निरी माटी अब भी
माटी में ही मिल जाउंगी
पर इस सकून के साथ
माटी में मिलने से पहले
किसी के तो काम आई
संतोष भाऊवाला
मै निरी माटी अब भी
माटी में ही मिल जाउंगी
पर इस सकून के साथ
माटी में मिलने से पहले
किसी के तो काम आई
आपने सही कहा माटी जब माटी में मिले उससे पहले किसी के काम तो आये .
कविता अच्छी लगी
बहुत बहुत शुक्रिया
सुन्दर कल्पना और अर्थ लिए प्रभावी रचना
बहुत मन भायी
बधाई
आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ