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“झूठ बोले कौआ काटे”
Hindi Poetry |
“झूठ बोले कौआ काटे”
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जब तब हम किसी भी परिचित व्यक्ति से टकराते हैं,
नमस्कार या राम-राम कहके एक ही प्रश्न दोहराते हैं!
अरे भाई! क्या हाल हैं, आजकल क्या कैसा चल रहा है?
रटा-रटाया उत्तर आता कि दाल-रोटी से सब पल रहा है!
जब कि सच्चाई में दाल-रोटी से आज हो गई है इतनी दूरी
कि केवल दीनहीन लोगों के घर तक रह गई है ये मजबूरी!
सम्पन्न वर्ग तो करते पसंद हैं माल-मलाई या हलवा-पूरी,
तामसी वृत्ति के लोग गटकते हैं मांस-मदिरा संग तंदूरी!
यही है कारण जिससे बढ़ रही अनैतिकतापूर्ण आपा-धापी,
पुण्यात्मा हो रहे हैं विलुप्त और पापी हो रहे हैं सर्वव्यापी!
अनाचार-भ्रष्टाचार-व्याभिचार बढ़ने का यही है मूल कारण,
जिससे इस पावन धरती माँ की गरिमा का हो रहा संहारण!
शाकाहारी जीवन अपनाना ही इकमात्र है इसका निवारण!
इसीलिए पश्चिमी दुनिया में भी शाकाहार हो रहा अपेक्षित,
दुर्भाग्यपूर्ण है शाकाहारी भारतीयता जो करती इसे उपेक्षित!
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satya vachan hai kintu n karta koi shravan hai.
aapadhapi hai jagvyapi jisase dharti rah rah kaanpi.
mare bhale hi aadhi janta,tu to bhaiya chup kar kha pee.
yahi aacharan sadacharan hai!
@siddha nath singh,
बहुत बहुत धन्यवाद!