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नियति ….!
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यह मेरी Sept ’08 में इंग्लिश में की गयी posting ” Destiny ” के हिंदी अनुवाद का प्रयास है…
नियति ….!
जब नियति की बात होती है
बचपन में सुनी हुई ये बात याद आती है
कोसों दूर लगे मेले से
कुछ लोग अपने गाँव वापस जा रहे थे
एक पुरानी बस में सब सवार थे
रास्ते में जोरों की बरसात होने लगी थी
बिजली की भी बड़ी कड़कड़ाहट हो रही थी
जल्द बड़ी जोरों की बरसात के साथ
उस बस के पास आगे पीछे बिजली गिरने लगी .
बस में बैठे सब घबरा गए, बड़ी डरावनी हालत हो गयी
बस में बैठे बुजुर्गों ने इक मंदिर के पास बड़े से बरगद के नीचे
ड्राईवर को बस जल्द रोकने की सलाह दी
बरसात का जोर बढ़ रहा था बिजली आस पास गिर ही रही थी
बस में बैठे बुजुर्गों के बीच चर्चा होने लगी
उनका ये मानना था की किसी एक की मौत की घड़ी पास थी
इसलिए ही नियति ये स्पष्ट इशारा कर रही थी
और इक व्यक्ति के खातिर ही सबपर ये बुरी नौबत आ रही थी
फिर ये तय हुआ कि बारी बारी हर व्यक्ति मंदिर की प्रदक्षिणा करेगा
जिसकी मौत की घड़ी आयी उसपर नियती का वार होगा
बिजली उस व्यक्ति पर गिरेगी जब वह मंदिर के दूसरी तरफ होगा
इसीमे ही अब सबका भला है ऐसा सब का मानना हुआ
इस ठराव के बाद बरसात और बिजली का जोर भी बहुत कम हो गया
लोगों ने मान लिया कि नियति को भी यह प्रस्ताव मंजूर हुआ
फिर बारी बारी से धैर्य जुटा इक इक कर यात्री मंदिर का एक चक्कर लगाने लगे
उनपर बिजली नही गिरी इसलिए खुश हो भगवान् को दुआ देने लगे
अब बारी आयी इक सबसे बूढ़े व्यक्ति की जो बेचारा बीमार सा अशक्त था
उसने बहुत बिनती की कि उसे छोड़ दिया जाय उससे चला नही जाता था
पर लोगों ने नहीं माना, उसे जबरजस्ती उतार मंदिर का चक्कर लगाने भेजा
वह बेचारा जब धीरे धीरे मंदिर की दूसरी ओर पहुंचा ही था
कि बड़ी झगझगाहट के साथ बिजली गिरी और बड़ी कडकडाहट भी हुई
पर नियति देखिये बिजली उस बुढ्ढे पर नहीं पूरी बस पर गिरी
बस में बैठे सब लोगों का समय आ गया था बुढ्ढे का नहीं
उस बुढ्ढे के कारण ही वो सब बच रहे थे और वो समझ रहे थे बूढ़े का समय है
नियति का खेल किसके पाले पडा है ?
” विश्वनंद”
दिल को झझकोर देने वाली रचना है …….
वैसे …………
मनुज नही , ईश्वर ही बली है /
नियति के आगे किसकी चली है /
मन चाहा जीवन मिला हमेशा ,
मनचाही मोत कहा मिली है //
@Narayan Singh Chouhan
कमेन्ट के लिए हार्दिक शुक्रिया
आपकी बात सही है ,
नियति को समझ नहीं पाते
इसीमे शायद हमारी भलाई है
जो होता है अच्छे के लिए ही होता है
यही समझकर आगे बढ़ने में समझदारी है
आदरणीय विश्वनंद जी ,आपकी इस रचना ने बहुत बुरी तरह झकझोर दिया नियति के आगे सभी मजबूर है होगा वही जो नियति को मंजूर बधाई !!!
@santosh.bhauwala
कमेन्ट के लिए बहुत शुक्रिया
हाँ यही बात खरी है
इसीलिये Reinhold Niebuhr ने सुझाई प्रार्थना बड़ी अर्थपूर्ण है
“Lord grant me the serenity to accept the things I cannot change, the courage to change the things I can, and the wisdom to know the difference.”
kahne ka nirala andaaz aur kathya ka anokhpan,vaah.
@siddha Nath Singh
Comment aur prashansaa ke liye bahut shukriya