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पुकारा है जब भी किसी को लेकर तेरा नाम…..
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पुकारा है जब भी किसी को लेकर तेरा नाम
निगाहों ने भी किया इस बेखुदी का एहतराम
नज़रों से तेरी जो पि थी एक बार कभी मैंने
उम्र भर तरसते रह गए लबों को मेरे जाम
हर अंदाज़ से उनके ग़ज़लों के उनवां निकले हैं (उनवां-विषय )
और मैं लिखकर काग़ज़ पर होता रहा बदनाम
टूटे शीशे सी बिखरती लापरवाह बातें हैं उसकी
चुनता हूँ बिखरे टुकड़े पलकों से सुबह शाम
पलकों का झपकाना वैसा वैसी ही अदाएं सारी
वैसा ही न हो देखना इस वहम का भी अंजाम
दर्द फिर वही अंदाज़ लिए मिलता है शकील
फिर भी न जाने क्यों है दिल को बड़ा आराम
बहुत अच्छे
मनभावन नज़्म
शायर होते ही हैं यूं ही ऐसे बदनाम
ऎसी बदनामी ही है उनकीं खुशी दर्द और आराम
kya baat hai,
दर्द ने आराम का सामां किया
प्यार ने देखो किया क्या मोजिजा.
दे रही हर शय नशा सा बेपनाह,
यार ने देखो किया क्या मोजिजा.