« pyaar ki raah me | तुमसे नज़र जो जा मिली वक्ते रवां ठहर गया. वक्ते रवां-सचल समय » |
मुतालबात के माफिक़ मगर बिकूं क्या मैं.
Hindi Poetry |
वो कह रहे हैं नया कुछ लिखूं,लिखूं क्या मैं.
जो मैं नहीं हूँ वो आईने में दिखूं क्या मैं.
अभी तलक न मेरा रूप रंग निखरा है,
कुछ और वक़्त के आंवें में फिर सिकूं क्या मैं.
ये ख्वाहिशात का तूफ़ान तुन्दो तुर्श उठा,
चिराग एक हूँ अदना फ़क़त, टिकूं क्या मैं.
जिधर भी देखो खरीदार हैं खड़े मिलते,
मुतालबात के माफिक़ मगर बिकूं क्या मैं.