मेरा तेज सूर्या जैसा हो!

प्रचंड रूप धरा है पर, धरा को जीवन देता है,
खुद शोलो मे जल रहा,पर जल वर्षा करता है!
जिसके आने से फ़िज़ा मे हज़ारो फूल खिलते हैं,
उसे प्राणदाई,आंन्दमई , जीवंदाता कहते है!
निश्चल, निस्वार्थ भाव से जो बस देने को निकलते है,
उन्हे ही सूर्या कहते हैं,वो ही सूर्या से चमकते है!
इस कपट भरी दुनिया मे जहाँ अधर्म और नाश है,
वहाँ सूर्या विधमान है,तभी तो जीवन मे आश् है!
खुद को तपा कर जो दूसरो को साँसें देते हैं,
वो अलग से ही दिखते हैं सर्वोच स्थान पाते हैं!
हे ईष्ट देव मेरा एक कर्म इस जनम मे कुछ ऐसा हो,
बस एक दिन को ही सही मेरा तेज सूर्या जैसा हो!
डॉक्टर राजीव श्री वास्तवा
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