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——- // सफेद खून//——–

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Aug 2011 Contest, Hindi Poetry

अंकन
जिंदगी का,
अनुभव की कलम से ,
एहसास के कागज पर ,
जब भी मैने किया ,
कट्टरता की चिकनाई ,
इतनी थी गहरी ,
संवेदनहीन स्याही ,
उभार ना पायी,
इंसानियत के मायने /
मगर कोरा कागज भी ,
कह जाता है दास्ताने ,
और उभार देता है ,
कुछ अद्र्श्य प्रश्न चिन्ह ,
क्या दम साधे,
सिमट कर पड़ी रहेगी ,
किताबो के पन्नो में ,
आदर्श की बाते ?
या
भाईचारा अतीत की धरोहर रह जायेगा ?
गहरी हो जाएगी संबंधो की खाई क्या ?
या कोई दीवार अपनत्व को बाँट देगी ?
हाँ ऐसा होगा तो फिर उभरेगा ,
एक अनुत्तरित प्रश्न ,
क्या संवेदनहीन स्याही की तरह ,
पानी बन गया है ?
या
कागज की तरह सफेद हो गया है ,
तुम्हारा खून भी ?

4 Comments

  1. s n singh says:

    sundar, मगर दस्तानों को दास्तानों बनाइये.

    • Narayan Singh Chouhan says:

      @s n singh,
      मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद ,टायपिंग त्रुटी थी … सुधार दी /

  2. rajendra sharma 'vivek' says:

    सराहनीय prayaas

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