——- // सफेद खून//——–
अंकन
जिंदगी का,
अनुभव की कलम से ,
एहसास के कागज पर ,
जब भी मैने किया ,
कट्टरता की चिकनाई ,
इतनी थी गहरी ,
संवेदनहीन स्याही ,
उभार ना पायी,
इंसानियत के मायने /
मगर कोरा कागज भी ,
कह जाता है दास्ताने ,
और उभार देता है ,
कुछ अद्र्श्य प्रश्न चिन्ह ,
क्या दम साधे,
सिमट कर पड़ी रहेगी ,
किताबो के पन्नो में ,
आदर्श की बाते ?
या
भाईचारा अतीत की धरोहर रह जायेगा ?
गहरी हो जाएगी संबंधो की खाई क्या ?
या कोई दीवार अपनत्व को बाँट देगी ?
हाँ ऐसा होगा तो फिर उभरेगा ,
एक अनुत्तरित प्रश्न ,
क्या संवेदनहीन स्याही की तरह ,
पानी बन गया है ?
या
कागज की तरह सफेद हो गया है ,
तुम्हारा खून भी ?
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sundar, मगर दस्तानों को दास्तानों बनाइये.
@s n singh,
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद ,टायपिंग त्रुटी थी … सुधार दी /
सराहनीय prayaas
@rajendra sharma ‘vivek’,
धन्यवाद् Vivekji…….. आपका मार्गदर्शन मिलता रहे //