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प्रश्न पत्र हाथ मे- एक “हास्य रचना”
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
परीक्षा की तैयारी चाहे जितनी भी रहे ,
लोग “गुड- लक’ चाहे जितना भी कहें !
माँ के हाथो से तुम्हने चाहे जितनी दही खाई हो ,
या पूजरी की दी भभूति शीश पे लगाई हो !
मंदिर की सीढ़ी पे तूने नाक रगडी है ,
लोग कहते है “भाई” तेरी किस्मत तगड़ी है !
पर एक पल के लिए साँस रुक ही जाती है ,
जब आ जाता है “प्रश्न पत्र हाथ मे” !
परीक्षा भवन ,युद्घ भूमि जैसा लगता है ,
“इनविजिलेटर”एक दुश्मन सरीखा दिखता है !
“घूमता”है ऐसे जैसे किसी फौज का सिपाही हो ,
“घूरता” है ऐसे जैसे “लंकेश” का जुड़वा भाई हो !
टीचर प्रश्न पत्र हाथो मे ले सब को ललचाता है ,
आँखो के इशारे से उसकी :ग्रॅविटी” समझता है !
दिल भी कुछ छण के लिए धड़कना भूल जाता है ,
सचमुच ऐसा होता हैजब आता है “प्रश्न पत्र हाथ मे” !
प्रश्न पत्र से जैसे आँखे होती है चार ,
शरीर मे जैसे करंट का होता है संचार !
माथे से पसीने की बूँदे झरने सी टपकती हैं ,
किताब के पन्नो को याद कर आत्मा भटकती है !
जब कुछ समझ ना आता तो “मम्मी” याद आती है ,
बार बार “बाथरूम” जाने की होड़ लग जाती है !
होश उड़ जाते है,चहेरा पीला पड़ जाता है ,
ऐसा होता है!जब आता है प्रश्न पत्र हाथ मे !
कुछ ज्ञानी पुरुष वहाँ ऐसे भी होते हैं ,
प्रश्न पत्र को “केक” समझ चट कर जाते हैं !
“एक्सट्रा शीट” माँग माँग औरो की “टेन्षन” बढ़ाते हैं ,
अपनी कलम को पन्ने पे घोड़े सा दौड़ाते हैं !
कोई ताक- झाँक करे तो पन्ना छुपा लेते है ,
“मेडम ही ईज़ चीटिंग” का शोर मचा देते हैं !
क्यो उनकी भावनाओ को ये समझ नही पाते हैं ,
ऐसा भी होता है”जब आता है प्रश्न पत्र हाथ मे” !
कौन था वो जिसने परीक्षा लेने की रस्म बनाई थी ?
लगता है, उसे लोगो की खुशियों से रुसवाई थी !
लोगो के हँसते खेलते जीवन मे किसी ने आग लगाई है ,
पर”नो एग्ज़ॅम सिस्टम ने थोड़ी आश् जगाई है !
कुछ सालो तक ही सही आराम से पास हो जाते हैं ,
अगले दिन “एग्ज़ॅम” हो फिर भी चैन से सो जाते है !
काश! ये परीक्षा पूरी तरह ख़त्म हो जाती ,
और कभी ना आता “ये प्रश्न पत्र हाथ मे” !
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
विषय पर इक सुन्दर हास्यपूर्ण भावपूर्ण रचना ….
मेरे हिसाब से आज की प्रश्न पत्रिकाएं और reservation, quota सिस्टम गलत विद्यार्थिओं को ज्यादा और सच्चे sincere बुध्दिमान विद्यार्थिओं को कम मार्क्स देती है l इस style और system को सिरे से बदलने की जरूरत है l.
ये मार्क्स विद्यार्थी की बुद्धिमता और ज्ञान का सही मूल्यांकन नही है फिर भी बस इसको ही महत्त्व दिया जा रहा है .
@Vishvnand, H.C.Lohumi likes this comment !!!! 🙂
Dr Rajivji,
A fine subtle message through humorous satire making a dig at the current examination system
Hope we get over this exam fever fast.
Kusum
badi hee lubhawani rachna, manbhai
सचित्र वर्णन किसी प्रश्न के उत्तर की तरह ! बहुत अच्छे !
पुराने दिनों की याद दिलाने का शुक्रिया. कुछ और परीक्षाएं देने का विचार बन रहा है आपकी इस सुन्दर रचना को पढ़ने के बाद.
स्वाद लगा गया है आपकी कविताई का…ये भी ग़जब लगी भाई!
Thank you for this !!!!!