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बारिश के बाद
Hindi Poetry, Sep 2011 Contest |
तेज वर्षा ने अभी -अभी धरा को नहलाया है ,
धरती के हर अंग को स्वर्ण सा सजाया है ,
फूलो ने चंद बूँदे अपने आँचल मे समेटी हैं ,
पत्तो ने बूँदो की चादर चहु ओर लपेटी है !
दूर छत से पानी टॅप-टॅप नीचे गिरता है ,
विहग का एक झुंड सैर को निकलता है ,
नदी और नाले सर उठा हूँकार भरते हैं ,
पेड़ की आड़ छोड़ पथिक आगे को बढ़ते हैं !
नन्ही चिड़िया पँखो को झटक खुद को सूखाती है ,
खुशी से झूमती कोयल मधुर गीत गाती है ,
एक हवा का झोका जब पेड़ से टकराता है ,
लगता है मानो पानी फिर से बरस जाता है !
घर के आँगन में केचुवा जाने कहाँ से आता है ,
ज़रा सा छूओ तो झट से सिमट जाता है ,
देखो तो वो घेंघा कैसे मस्ती मे चलता है ,
बच के रहना कभी कभी साँप भी निकलता है !
रात होते ही दादुर ट्रर-ट्रर कर साथी को बुलाता है ,
झींगुर भी किर-किर कर कोहराम मचाता है ,
जूगनू टिमटिमा कर खूब रोशनी फैलता है ,
फिर काले बादलो का एक झुंड लौट के आता है !
सन्नाटे को चीरता बादल फिर गरजता है ,
देखते ही देखते फिर ज़ोर से बरसता है ,
बरखा यूँ ही आती और चली जाती है ,
हर बार जिंदगी के कुछ नये रंग दिखती है !
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
बढ़िया अंदाज़, बढ़िया वर्णन करती रचना
मन भावन
हार्दिक बधाई
@Vishvnand, hoslaafzahi ke liye bahut bahut dhanyavad sir
prakriti varnan achchha parantu kuchh chamatkarikata kee aasha thi kavita se jo adhuri rah gayi.
@siddha Nath Singh, Dhanyavad sir,bhavisya me prayash karoonga ki aap ki kasuti par khara utar sakoon
सच में अतिसुन्दर रचना.
@kalawati, sahirday dhanyavad
@kalawati, bahut bahut dhanyavad
पूरा बारिश का मौसम अकेले-अकेले गुजारने के बाद कम से कम आप आये तो ! बहुत इंतज़ार करवाने के बाद ही सही .
बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
@Harish Chandra Lohumi, Harish ji! ab sach much apna sa lag raha hai.is manch se kuch samay tak door rahna pada–iska mujhe bhi khed hai.aaiye ek baar phir ho jaye.aap ki pratikiriya ke liye dhanyavad.
bahut hee badhiya and sundar rachna .. very colorful and picturesque. Loved it. 🙂
@vijesh bhute, Tons of thanks, Iam honored .
एक तस्वीर सी खींच दी आपने वर्षा ऋतू की
सुन्दर रचना बधाई
बहुत पसंद आई आपकी कविता..क्या खूबसूरत चित्रण है वर्षापात के बाद का. कविता के शब्द बेहद सुरीले, सहज और एक नैसर्गिक बहाव लिए हुए हैं..जो बहुत ख़ास लगी वे पंक्तियाँ ये रहीं…
एक हवा का झोका जब पेड़ से टकराता है ,
लगता है मानो पानी फिर से बरस जाता है !
देखो तो वो घेंघा कैसे मस्ती मे चलता है ,
बच के रहना कभी कभी साँप भी निकलता है !
रात होते ही दादुर ट्रर-ट्रर कर साथी को बुलाता है ,
झींगुर भी किर-किर कर कोहराम मचाता है ,
(आखरी पंक्ति में दादुर का अर्थ मेंढक है क्या? बस यह पुष्टि करने का कष्ट करें)