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वरना जोगन बन डोलूँगी …..
Hindi Poetry, Sep 2011 Contest |
वरना जोगन बन डोलूँगी …..
जी भर बरसे मेघा फ़िर भी, पपिहन “प्यासी हूँ” बोले,
शब्द प्यास के फ़िर वह रह रह सबके कानों में घोले ।
लगता है कुछ शेष रह गयी अन्तर्मन की टीस सखे !
जी भर नाचा खूब मयूरा, फ़िर अधीर है पर खोले,
हरियाली का ताज सजा था कल बारिश की रिमझिम में,
कुम्हिलाने फ़िर लगी धरा है, शनै: शनै: हौले हौले ।
घर आँगन जलमग्न हुए थे, झरने भी थे खूब बहे,
पर यह कैसी प्यास सखे ! जो खड़ी ओखली मुँह खोले ।
अब तुम ही बतला दो कैसे, एक स्पर्श से जी लूँ मैं,
तुम मुझसे कहते हो भर लूँ , एक बार में ही झोले ।
मन की पीड़ा समझ सको तो, मिलना बारम्बार सखे !
वरना जोगन बन डोलूँगी, अलख निरंजन बम भोले ।
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
सुन्दर वर्णन हरीश जी
जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है
बधाई
@nitin_shukla14, हौसला अफजाही का शुक्रिया नितिन जी ! आभार स्वीकारें .
thodi meethi thodi khatti–chatpati aanadmai rachna–aap ki lekhne ke shaaili badi hi nirali hai–badahai
@rajivsrivastava, आपकी दिलकश प्रतिक्रिया यूं ही मिलती रहे तो फिर कोई क्यों लिखने में कंजूसी करे राजीव जी !
पढ़कर ऐसी सुन्दर रचना
मन खुश होकर यूं बोले
ऎसी सुन्दर रचना पढने
हरदम हम वर माँगते रहते
अलख निरंजन बम भोले …..
अति प्रशंसनीय
हार्दिक बधाई
@Vishvnand, आपका आशीर्वाद साथ है तो फिर क्या कमी है सर !
sundar geet.
@siddha Nath Singh, आप ही तो कहा करते हैं ना- ज़हे नसीब !