« बजाहिर ख्वाहिशों में दम बहुत था. | The ghost traveller » |
हैं मिल कर आप से पछता रहे हम.
Hindi Poetry |
हैं मिल कर आप से पछता रहे हम.
हकीकत खुद की भूले जा रहे हम.
मुसलसल गामज़न जो कारवाँ है मुसलसल-निरंतर,गामज़न-चलायमान
उसी का हो महज हिस्सा रहे हम.
अना अपनी तो है शीशे से नाज़ुक अना-आत्माभिमान,अहम्
हिफाज़त में ही टूटे जा रहे हम.
किया जो गर्क ये तो सोच लेते, गर्क-डुबाना
किसी डूबे का थे तिनका रहे हम.
अभी खाता बही बस रह गए हैं,
कभी थे रसभरी कविता रहे हम.
परिंदे आ के जिस पर बैठते थे,
कभी वो शाखे पुर सब्ज़ा रहे हम. पुर सब्ज़ा-हरियाली भरी
अक़ीदा है, फ़क़त नारा नहीं है, अक़ीदा-सिद्धांत,श्रद्धा
समझ जाओ, अभी समझा रहे हम.
बजा होगा गुमां अब टूट जाए- बजा-उचित
“कभी इस मुल्क के राजा रहे हम”.
ज़ुबाने खल्क़ में आईन लिखते, ज़ुबाने खल्क़-जनभाषा,आईन-संविधान
न अहमक़ इस क़दर ज्यादा रहे हम. अहमक-मूर्ख
तुम्हे रोटी मयस्सर हो न हो,पर
तरक्क़ी से हुए तर जा रहे हम.
सफेदो स्याह का क्या फ़र्क़ रखते,
फ़क़त कलदार के शैदा रहे हम. कलदार-मुद्रा
तुम्हारी आँख ने देखा जिसे था,
वही सपना भुना कर खा रहे हम.
बहुत अच्छे
रहे हम देखते जन्नत के सपने
जहन्नुम को चले पर जा रहे हम ….
@Vishvnand, dhanyavaad.