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अश्कों की मानिंद लहू बहा पलकों से………
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यूं नही के उसका इंतज़ार भी नहीं
हाँ पहले सा दिल बेकरार भी नहीं
मैं चला था जिसकी एक आवाज़ पर
अब वो मिलने को मुझसे तैयार भी नहीं
अश्कों की मानिंद लहू बहा पलकों से
दर्द थमे किसी सूरत ऐसे आसार भी नहीं
जल रहा है जिस्म है कड़ी धुप का सफ़र
इश्क के सेहरा में कोई दिवार भी नहीं (सेहरा – रेगिस्तान)
छलक जाये जो पैमानों से बेहया शराब (बेहया – बेशर्म)
ऐसे पैमानों का मैं तलबगार भी नहीं (तलबगार – चाहने वाला)
है एहद उसका के मिलेंगे क़ब्ल-ए-क़यामत (क़ब्ल-ए-क़यामत – क़यामत के पहले)
ऐसा नहीं के मुझे उसका ऐतबार भी नहीं
गर्क़े दरिया ही कर दे सफीना तू शकील (गर्क़े दरिया – नदी में डूबना)
कोई नहीं इस पार तेरा उस पार भी नहीं
Fine example of a gazal in the tradition of bygone masters like Ghalib, Faiz etc.
Kusum
वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल और स्टाइल
पढ़कर मज़ा आया जिसका जवाब भी नहीं
बहुत दिनों बात आये, लगता है व्यस्त थे और कहीं
commends
khoobsoorat andaze bayan.
शकीलजी, बहुत बढ़िया .