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“रावण-दहन” – ‘एक निरुत्तर ज्वलंत प्रश्न”

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Hindi Poetry
“रावण-दहन” – ‘एक निरुत्तर ज्वलंत प्रश्न”

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मरणोपरांत दफ़न या दहन होता है केवल एक बार,
फिर क्यों ये है भारत में किया जाता रहा बार-बार ?
लाखों करोड़ों का व्यय होता है मात्र रावण दहन पर,
ये है मात्र परम्परागत भावुकता का प्रश्न निरुत्तर !
भारतीय आन है कि निहत्थे, मरे हुए को न मारना,
फिर क्यों बारम्बार मृत कंस-रावण जैसों को मारना ?
मरे हुए प्राणी के कनागत अथवा श्राद्ध ही किए जाते हैं,
जिनके लिए उनके बंधुगण मात्र ही बाध्य किए जाते हैं !
केवल पुतलों को बना करके ध्वस्त करना या जलाना,
लाखों में एकत्रित होना और इसे देखके मन बहलाना !
भीड़-भाड़ के कारण अनेकों हादसे ही जो होते आये हैं,
जिनमें घायलों, मृतकों के बंधुगण बहुधा रोते पाए हैं !
हज़ारों ऐसे गुंडे, लफंगे, अनाचारी इस देश में छाये हुए,
उनके क्यों नहिं ठिकाने अब तक किसी को पाये हुए ?
     जन्माष्टमी, दशहरा-मेला, दुर्गाष्टमी में जो अपव्यय होता,      
राष्ट्र के जन-धन-बल का अनायास अनुपयोगी क्षय होता !
मेरे इन प्रश्नों का उत्तर कहीं भी आजतक न मिल पाया,
सोचते-सोचते ऐसा मेरी सदा जलती-उबलती रही काया !
जब कि मैं देखता-सुनता हमारे देश में लाखों हैं भूखे-नंगे,
यत्र तत्र आये दिन होते आये बम-विस्फोट, झंझट या दंगे !
यदि मात्र पारंपरिक त्यौहारिक अपव्यय पर पाबंदी हो पाये,
करोड़ों का धन बच पाये जो दीन-हीनों को भी कुछ पनपाये !
      
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10 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत अर्थपूर्ण रचना
    काफी निपक्ष दृष्टी से है इसे पढ़ना और समझना
    अपनी संस्कृति से उभरी पुरानी प्रथाओं और उत्सवों की महान है भावना
    सत्य की झूठ पर, अच्छे की बुरे पर और पुन्य की पाप पर विजय है दर्शाना और याद दिलाना
    पर समय के अनुसार इन प्रथाओं और उत्सवों में सुधार जरूरी है करना
    पुरानी प्रथाओं की पुण्य भावनाओं को बिन दुखाये ही सारे बदल हैं लाना …

  2. c k goswami says:

    जयंतियां और पुन्यतिथियाँ manakar mahapurushon ke achchhe karyon kee yaad to dilaya jana sahi hai kintu har saal mare ko phir se maar kar jashn manana wakayee ek azeeb see baat hai.—–ek niruttar prashna ka zawaab wakayee me diya jana chahiye.kya rawan ko har saal marnewale logon ke tarkash ke teer bhonte ya dhaarheen ho gaye हैं jinse ek rawan bhi nahi mar paa raha hai?

  3. Nitin Shukla says:

    प्रश्न बहुत ही उत्तम है, पर दुर्भाग्य इसका उत्तर किसीके पास नहीं
    ऐसा प्रतीत होता है की जैसे मनुष्य ने हर पुरानी प्रथा को अपने अनुसार अपने मनोरंजन का साधन बना लिया है, बहुत हद तक यह परम्पराएँ व्यापार का मौका भी देतीं हैं और साथ ही साथ नेताओं का महिमा-मंडन भी हो जाता है
    हमारे घर पर जब कोई जरूरतमंद भिक्षा मांगने आता है तब हम उससे १ -२ रुपये देकर संतुष्ट हो जाते हैं, पर जब कोई इन कार्यक्रमों के आयोजन हेतु चंदा मांगने आता है तो उस चंदे की कोई सीमा नहीं होती, हम स्वयं ही ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देते हैं …..
    इस रावन दहन रूपी सामाजिक बुराई को आपने बहुत ही सुन्दरता से अपनी रचना में ढाला है, बधाई

  4. आपके उक्त प्रश्न विचारणीय है समाज के नीती निर्धारको को परम्पराओ में परिवर्तन करना चाहिए
    साहित्यकार समाज को विचार प्रदान करते है दिशा देना संतो एवम समाज सेवियों का काम है

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