« “शब्द-ज्ञान”-(४) | “Hazardous stray hogs and dogs” » |
तुम तो बच निकले मगर, बारी हमारी आ गयी
Hindi Poetry |
तुम तो बच निकले मगर, बारी हमारी आ गयी
तुम तो बच निकले मगर, बारी हमारी आ गयी,
अब हमारे पास ही, गर्दन के आरी आ गयी ।
हममें भी जज़्बा था हम भी बच निकलते वार से,
बेबसी थी, सामने आँखें तुम्हारी आ गयी ।
वाह रे तेरी मोहब्बत वह तमाशा वाह रे,
मेरा बन जाना, गज़ब सा तेरी यारी ढा गयी ।
आ गया है आज मौका पास से देखेंगे हम,
दर्द को नज़दीक से चखने की बारी आ गयी ।
अब तो होनी है कयामत चन्द लमहों बाद ही,
वारदाते इश्क में हमको खुमारी छा गयी ।
लग रहा है इश्क़ का यह देवता पैदल हुआ,
इसका अब कोई नहीं हम पर सवारी आ गयी ।
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
तुमने तो रचना लिख शेयर कर डाली अब कमेन्ट की बारी हमारी आ गयी
बहुत ही प्रशंसनीय मनभावन मीठी लगी रचना; ये उत्स्फूर्त प्रतिक्रिया अपनेआप निकल आयी
क्या बात है; हर शेर जो पढ़े उनकी हर बात ही लगी अलग निराली और मतवाली
हार्दिक अभिनन्दन और बधाई
@Vishvnand, आपका प्रोत्साहन शिरोधार्य है सर! हार्दिक धन्यवाद .
bahut khoob,
@siddha Nath Singh,
थैंक यूं सर !
बहुत खूब .मनको भाई
ऐसी खुबसूरत रचना आई
@kishan, रचना ने तारीफ़ पायी…पुरस्कार सा मिला. हार्दिक आभार .
पढ़ कर आप की इस रचना को,
होठों पे हंसी हमारी आ गयी…!
बहुत बढ़िया….! 🙂
@amit478874,
आपके लब मुस्कुराए… प्रसन्नता हुई 🙂
Koi baat nahin Harish bhai……. saab ki baari aayegi!!!
@Rajeev, बहुत ठीक फरमाया हुजूर !
एक से बढ़ के एक काफ़िये एक से बढ़ के एक ख़याल…मोहब्बत में फना होने की तैयारी आ गयी;)
@Reetesh Sabr, काफिये और ख़याल.. काश ! हमारी भी पहचान होती इनसे .