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तू बैठी है पास यूं मेरे ….!(Geet)

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Hindi Poetry, Podcast

This is a old situational song (geet) of the 70’s being posted now with its rendering in a new podcast in the original tune that the song had got composed. The situation is ….

Taking all sorts of troubles & risks, she has been able to come to meet her fiancé, as he insisted upon, at the appointed place;  is now sitting by his side, and becomes pensive, lost in her own uneasy thoughts, remembering her parents and pondering whether her action and taking risk of this sort in love to meet him was at all prudent or wise. Her fiancé, is not able to understand all this, and since she is lost in her own thoughts while sitting by his side, feels she is not in love with him with any intensity, the way he is.
The song emerges out of & portrays this feeling of the fiancé.

 

 

 

तू  बैठी  है  पास  यूं  मेरे  ….!

तू  बैठी   है   पास  यूं  मेरे ,
दिल  है  तेरा   और  कहीं,

क्या  करुँ   तेरे  दिल  को पाने,
ये  मुझे  मालूम  नहीं,
दिल  खोया  है  मैंने,  पाया  नहीं,
प्यार  मेरा  क्या  कुछ  भी  नहीं …….!
दिल  खोया  है  मैंने  पाया  नहीं  ….

ह्रदय  ने  तेरे  दूरी  रखी  है,
मेरे  ह्रदय  की  शिकायत  है  ये …
मेरे  ह्रदय  में  तो  तू  ही  बसी  है,
मेरे  ह्रदय  की  इबादत  है  ये,
तूने  बनाया  दीवाना  मुझे  है
तुझे    तो    इसकी  कुछ  परवाह  नहीं…
दिल  खोया  है  मैंने,  पाया  नहीं,
प्यार  मेरा  क्या  कुछ  भी  नहीं …….!

नज़रों  में  तेरे  मैं  खोऊँ   सभी  कुछ,
तुझे   मगर  खोना  आता  नहीं,
तू   जब       मिले,  दिल  मचले  खुशी  से,
तुझे    मगर  प्यार  आया  नहीं,
तेरे   मिलन  के  मैं  सपने  सजाऊँ,
तूने   कभी  जो  हो  सोचा  नहीं ….
दिल  खोया  है  मैंने,  पाया  नहीं,
प्यार  मेरा  क्या  कुछ  भी  नहीं …….!

तू   बैठी   है   पास  यूं मेरे,
दिल  है  तेरा   और  कहीं,
क्या  करुँ   तेरे  दिल  को पाने,
ये  मुझे  मालूम  नहीं,
दिल  खोया  है  मैंने,  पाया  नहीं,
प्यार  मेरा  क्या  कुछ  भी  नहीं …….!
दिल  खोया  है  मैंने  पाया  नहीं  ….

” विश्व नन्द “

8 Comments

  1. kusumgokarn says:

    Sweet song.
    It shows how silence can be misunderstood at times.
    kusum

  2. ashwini kumar goswami says:

    रचना बहुत भावनात्मक लगती है किन्तु सर्वनाम का अनेक बार अशुद्ध
    प्रयोग यदि ठीक कर लिया जाय तो श्रेष्टतर होगा ! यथा, तीसरी पंक्ति में
    ‘तेरा’ का प्रयोग ठीक नहीं, क्यों कि पहली पंक्ति तथा शीर्षक में ‘तुम’ का
    प्रयोग होने पर उसके सम्मुख ‘तुम्हारा’ प्रयुक्त किया जाना ही ठीक है !
    ‘तू’ का प्रयोग होने पर ही उसके सम्मुख ‘तेरा’ प्रयुक्त होता है ! इसी प्रकार
    तीसरे और चौथे अनुच्छेदों में लगभग सर्वनामों की पूर्णतः अशुद्धियाँ हैं
    जिनको ठीक की जाने पर ही रचना शुद्ध हो सकेगी ! लगता है संभवतः
    आपने रचना पोस्ट करने के बाद दुबारा उसे नहीं पढ़ा होगा !
    सुझाव के लिए क्षमा करें, क्यों कि आपके निदेशानुस्सर ही मुझे आज से ही मेरे सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए समीक्षा करनी पड़ रही है तथा जहां
    भी त्रुटियाँ सामने आयीं उनका निस्संकोच उल्लेख करना उचित मान लिया है जैसा कि आपने सुझाया कि इससे रचनाकारों की प्रस्तुत रचनाओं में
    सुधार हो पाए !

    • ashwini kumar goswami says:

      @ashwini kumar goswami,
      कुछ और भी — इस सम्बन्ध में प्रयास करने पर मुझे लगता है कि न केवल
      समय का बहुत क्षय होगा बल्कि मुझे अपनी रचनाएँ भी समुचित रूप में
      प्रस्तुत करने हेतु समय निकालना पड़ेगा ! इसीलिए मैंने प्रतिकूल समीक्षा
      से अपने आप को अलग रखना ही उचित समझा था जिससे आपने असहमति
      जतायी थी !

      • Vishvnand says:

        @ashwini kumar goswami
        आपकी ऐसी परिपूर्ण समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ. इस समीक्षा से मेरे इस गीत में शब्दों की गलतियों के बारे में सुन्दर ज्ञान हुआ है जो इस और अगली रचनाओं में मेरे लिए सुधार की drushti से बहुत लाभदायक होगा . p4poety पर जिन्हें भाषा का ज्ञान है उनसे अन्य authors की यही अपेक्षा रहती है अगर वो समय निकाल सकें तो .. आपने जो इस कमेन्ट के लिए तकलीफ उठाई और समय निकाला उसके लिए क्षमा चाहूँगा यह व्यर्थ नहीं जाएगा इसका assurance है और आपको बहुत धन्यवाद भी .

      • Vishvnand says:

        @ashwini kumar goswami ,
        रचना में jaisaa samajh में aayaa sudhaar incorporate kar diyaa hai . Shaayad ab rachanaa technically theek ho. Geet ke podcast ko abhii change nahii kiyaa hai.

        • ashwini kumar goswami says:

          @Vishvnand,सहृदय साभार
          धन्यवाद ! देखा अब रचना कितनी विशुद्ध हुई है और अपनी पूरी आभा
          दिखा रही है ! आपकी रचना हेतु तो मैं साधिकार ऐसी समीक्षा कर पाया
          हूँ क्यों कि आपकी लेखन भावना निष्ठापूर्ण ही होती है और आप ठीक
          और ग़लत के बीच तुरत ही समझ सकते हैं, किन्तु भय है क्या अन्य बन्धु गण भी ऐसा कर पायेंगे अथवा अन्यथा लेकर वातावरण को विवादास्पद
          बना देंगे ? जहां तक कुछ बताने सीखने का प्रश्न है, आपको भली भांति
          स्मरण होगा कि मैनें अपने अर्जित ज्ञान से पद्यात्मक रचनाओं हेतु अनेक
          बार इसकी नियमावलियां मंच को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत की हैं जो फोरम के अभिलेख में प्रविष्ट हैं और ज्ञानदायक हैं !

          • Vishvnand says:

            @ashwini kumar goswami
            हार्दिक शुक्रिया.
            रचना की ये technical त्रुटिया मेरे ध्यान में नहीं आयी थीं जब तक आपने इन्हें विदित नही किया. पर इक विचार मन में है. प्रेम गीत इक dialogue सा होता है जिसमे प्रेमी या प्रेमिका इक दूजे को जैसा चाहे कभी आप कभी तुम कभी तू interchangeably address करते रहते हैं और यह गीत के हिसाब से ज्यादा ठीक होना चाहिए . Sometimes technically correct poem does not appeal in a geet. That’s why I have not attempted to change the wording in the podcast. Would like to know your view/opinion in the matter.

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