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धमाका
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आकाश पर सितारों जडी चादर तनी थी
रात का वह पहर ,शांत ,निःशब्द
पसरी निस्तब्धता के आवरण में
पूरी कायनात सिमटी हुई थी
केवल हवा के झोंकों की साँय साँय
सुनाई दे जाती उस वातावरण में
सहसा एक धमाका कहीं
सन्नाटा चीत्कारों से भर गया
कोई कुछ समझा नहीं
क्या हुआ कैसे हुआ कौन कर गया
घायलों की करुण पुकार ,कातर ,
अम्बुलेंसों,पुलिस वाहनों के स्वर
कब तक रहेगा ऐसी अराजकता का साम्राज्य…
कब मिटेगी प्यास इन आतंकवादियों की…
जन प्रतिनिधि लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे
क्षुद्र स्वार्थ के लिए भ्रष्टाचार में आकंठ डूब रहे
राजनीति की आड़ में देश को खंड खंड कर रहे
न रोज गार न शिक्षा, देश को गिरवी रख रहे
कब समझेंगे ये नेता देश को अपना
पूर्ण होगा सुसंस्कृत औ समृद्ध बनने का सपना
आजादी की हवा में सांस लेगा देश अपना
लहू की प्यास आखिर कब बुझेगी
आँखें खुली रह गईं , समझ न पाई
जो देखा वह स्वप्न था कि सत्य, तय कर न पाई
संतोष भाऊवाला
अतिसुन्दर अर्थपूर्ण मार्मिक और प्रभावी
सच में बहुत कुछ सोचने को प्रेरित करनेवाली
रचना बहुत मन भायी
Sharing के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय विश्वनंद जी ,आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय विश्वनंद जी,पहले जो भी कविता p4poetry पर आती थी उसकी अपडेट मेरी मेल में आ जाती थी, लेकिन अब नहीं आ रही है ,जिससे p4poetry से एक दूरी सी होती जा रही है ,अस्तु मै चाहती हूँ कि फिर से अपडेट हो , कृपया बताएं कि मुझे क्या करना होगा इसके लिए ?
सदर
संतोष भाऊवाला
@Santosh Bhauwala
p4p की सुविधाओं में कुछ बदल हुए है और साईट के अच्छे से चलने के लिए कुछ अच्छे और changes भी किये जानेवाले हैं. तब तक हम मेम्बर्स को p4p पर आकर ही नयी post की गयी रचनाओं और कमेंट्स के बारे में जानना होगा .
Membars जो कमेन्ट करते हैं उनकी reply तो अब भी भेज रहे हैं ..