« ‘ मेरा बचपन ‘ | ज़मीं का दर्द न समझेंगे आसमां वाले. » |
निजात की है यही एक राह, कहते हैं.
Hindi Poetry |
निजात की है यही एक राह, कहते हैं. निजात-मुक्ति,मोक्ष
सभी को छोड़ के बस मुझको चाह, कहते हैं.
वो आबशार है लुत्फो करम का, रहमत का, आबशार-स्रोत,झरना,लुत्फो करम रहमत-दया,और कृपा
जिसे कि लोग तुम्हारी निगाह कहते हैं.
ये ज़ुल्फ़ है कि धुंआ हुस्ने शम्मा रू का है,
कि जिसमे जलके शलभ हों तबाह, कहते हैं.
तुम्हारे एक तबस्सुम पे मुनहसिर है बहार, मुनहसिर-निर्भर,मेहरो माह-सूरज और चाँद
तुम्हारे पीछे चलें मेहरो माह, कहते हैं.
बने हैं यूँ कि बनें तेरी आँख का काजल,
बला से लोग मुझे रू सियाह कहते हैं. रू सियाह-काले चेहरे वाला,पापी
यहाँ निभेगी भला कैसे अहले उल्फत की, अहले उल्फत-प्रेमपथ के अनुयायी
यहाँ तो इश्क को सारे गुनाह कहते हैं.