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बहार देखूं गुलिस्तां में या खिज़ां देखूं,
Hindi Poetry |
बहार देखूं गुलिस्तां में या खिज़ां देखूं,
तुम्हारे फैज़ का जलवा ही रुनुमाँ देखूं. फैज़-कृपा
न कुछ गुमान है अहले सफ़र को मंजिल का,
कहाँ पे जाए ये साँसों का कारवाँ देखूं.
तुम्हारा प्यार मैं देखूं कि ये जहां देखूं.
दिमागोदिल में छिड़ी जंग है कहाँ देखूं.
मुझे तो सारा जहाँ ही हसीन लगता है,
कहीं भी देखूं तेरे हुस्न का समा देखूं.
तुम्हारा जिक्र, तुम्हारा बयान है हरसू,
हरेक हर्फ़ में तुमको ही मैं अयाँ देखूं. अयाँ-प्रकट
इसी में इश्को जुनूं की तो कामरानी है, कामरानी-सफलता
मैं तेरी ज़ात में करके खुदी फना देखूं. ज़ात-अस्तित्व,खुदी-अहम्,फना-लीन