« उनसे क्यूँ होती अदावत कोई. | ‘ मेरा बचपन ‘ » |
संगीत से ———
Hindi Poetry, Oct-Nov 2011 Contest |
अमवा के पेड़ पे बैठी कोयल कारी कारी ,
कूह-कूह के बोल सुनाये,डोले डारी डारी !
सुन कर उसकी धुन,दो पल बादल भी रुक जाते हैं ,
झूम झूम कर नाच दिखाये, उसके आगे झूक जाते हैं !
बच्चे सरपट छोड़ के बल्ला,लपके उसकी ओर ,
नकल उतारे,उसे चिडाये ,खूब मचाये शोर !
अबोध मन ने किया प्रश्न,माँ ये कोयल क्यो नाम कमाये ,
ना रंग ,ना रूप है इसका फिर ये क्यो सब मन भाये !
बोली माँ ,प्रभु ने कोयल को बनाया काला ,
पर इसको वरदान दिया इसके कंठ अमृत स्वर डाला !
देकर इतने प्यारे स्वर कोयल को, प्रभु हमे बतलाते है ,
जो मधुर वाणी बोले वो अवश्य ही नाम कमाते है !
जिसने भी संगीत से अपनी वाणी को सींचा है ,
दिल मे जगह बनाई उसने ,और सब का मन जीता है !
संगीत ना देखे ऊँच – नीच ,ना देखे कोई जात-पात ,
जो भी करे साधना इसकी,उसे मिल जाती ये सौगात !
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
सुन्दर कल्पना और उसपर रची रचना
बहुत मन भायी यह संगीत के प्रति भावना
हार्दिक बधाई
कूह-कूह = कुहू कुहू ; झूक = झुक
सही है …………….
जिसने भी संगीत से अपनी वाणी को सींचा है ,
दिल मे जगह बनाई उसने ,और सब का मन जीता है !
संगीत ना देखे ऊँच – नीच ,ना देखे कोई जात-पात ,
जो भी करे साधना इसकी,उसे मिल जाती ये सौगात !
क्या बात है.