« आती है आज भी दिल से मेरी आवाज….. (पार्ट 2) | गए दिन बीत बस इकबार, फिर से ये नहीं मिलते….!(Geet) » |
आ उ ट डे टे ड / O U T D A T E D
Hindi Poetry |
आ उ ट डे टे ड / O U T D A T E D
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अब मैं लगने लगी हूँ ना तुम्हें,
आउटडेटेड !
एक पुराने डेस्कटॉप पीसी की तरह .
अब मैं दे भी कहाँ पाती हूँ,
परफोर्मेंस,
तुम्हारी मनमाफिक ।
मैं जानती हूँ ,
तुम्हें भायी है कोई,
नयी नवेली,
लैपटॉप सी,
जिसे तुम जब चाहो,
ले जा सकते हो,
अपने साथ,
बिठा सकते हो,
अपनी गोद में ,
पूरा इन्जौय भी कर सकते हो ।
लेकिन देखना !
वो दिन भी जरूर आयेगा,
जब तुम निकालना चाहोगे,
अपने दिल की भडा़स,
और जोर जोर से मारना चाहोगे,
अपनी उँगलियों को,
उस लैपटॉप के “की-पैड” पर,
पर नहीं मार पाओगे,
वह कहाँ सह पायेगा,
वार पर वार ।
वह खराब नहीं हो जायेगा ?
उस दिन तुमको,
जरूर याद आयेगा,
आउटडेटेड डेस्कटॉप पीसी का,
वह “की-बोर्ड” ,
जो तुम्हारे सारे वार सहन कर,
हमेशा खुश सा रहता था,
मेरी तरह ।
*** हरीश चन्द्र लोहुमी
हरीश जी
कविता मर्म भाया की पुराना व्यक्ति वस्तु या कृति वह ज्यादा मजबूत होती है
क्योकि नहीं पड़ता उसमे आधुनिक कृत्रिमता का साया
@rajendra sharma ‘vivek’, आपकी इस त्वरित प्रतिक्रया और प्रसंशा का आभारी हूँ “विवेक” जी .
वाह वाह क्या बढ़िया सी रचना और आपका अंदाज़े बयाँ
कुछ भी कहिये हम पुराने हैं और पुराना ही सच में होता है पूर्ण अपना
देखा न जाता अपने लैपटॉप का और किसी ने भी अपने लैप पर रखना
Hearty commends for the elegant poem
@Vishvnand, रचना और अंदाज़े बयाँ की तारीफ़ का शुक्रिया सर ! आशीर्वाद बनाए रखें.
old is gold hai na harish ji,
@lokendra Singh, आपने मेरे मन की बात कह दी सर ! हार्दिक आभार और धन्यवाद.