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एक सुखोई और गिरा….
Hindi Poetry |
(अल्प समय में एक असफल सा प्रयास)
एक सुखोई और गिरा
ऊंचाई पर इतराते हो,
पर परहित से कतराते हो,
समझ सभी को घास फूस सा,
बन खजूर से बल खाते हो,
याद रखो इक दिन पाओगे,
खुद को भी बिखरा-बिखरा,
अम्बर की ऊंचाई छूकर,
एक सुखोई और गिरा.
यह जग आनी जानी छाया,
झूठी दौलत झूठी माया,
ऐसे ऊंचे पर क्या चढ़ना,
नहीं किसी के काम जो आया,
आज चढ़े हो आसमान पर,
मत जाओ तुम भूल धरा,
अम्बर की ऊंचाई छूकर,
एक सुखोई और गिरा.
****** हरीश चन्द्र लोहुमी
भावभीनी सुन्दर मार्मिक रचना मन दुखा गयी
पर जो विमानें दुख देई उसका नाम क्यूँ सुखोई
इनको जरूर कुछ दूसरा नाम देना होगा
तब शायद इनसे अपघात भी कम होगा …
sundar prateekatmak kavita.
“याद रखो इक दिन पाओगे,
खुद को भी बिखरा-बिखरा.. ”
कम शब्दों में सार्थक कृति. शुभकामनाएं.